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अनसुलझी-सी बातें

अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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कुछ अनसुलझी-सी बातें मन की,
कुछ बिन गाये गीत हमारे
समय के पंखों पर बैठे,
कुछ बोझिल अरमान हमारेl

इनको पूरा करने की ख़ातिर,
कुछ धुंधले से शौक़ हमारे
स्वच्छ धरा को धूमिल करते,
मन के मनमौजी मेघ निरालेl

बहुत हुआ ये सावन-भादो,
बहुत किया ये ताप सहन
संग तुम्हारा हुआ बसंत अब,
न तुम व्याकुल,न मैं बेचैनl

पतझड़ के आने की शंका,
पत्तों के झर जाने का डर
मूंद लिए हैं नैन ये अपने,
स्वप्न सजीले दो इनमें भरl

आती है जब मिलन की बेला,
कब पहर का होता भान
सम्मुख तेरे अर्पित है अब,
मेरे पवित्र प्रेम का मानl

भंग हुआ है मौन भी अब तो,
सम्मुख किन्तु है लज्जा भी
तुम ही बिखरा दो केश घनेरे,
तुम बिखरा दो सज्जा भीl

कोई शील कोई मर्यादा,
अब न मुझको याद रहीl
मैं हूँ,तुम हो और प्रेम है,
जीवन का है सार यहीll

परिचय-अंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”

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