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अखंड विश्व की परिकल्पना असंभव नहीं

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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अखंड विश्व की परिकल्पना भारतीय जनमानस के लिए नई नहीं है,सनातन संस्कृति सदा से ही वसुधैव कुटुंबकम् और विश्व बंधुत्व की भावना से ओत-प्रोत रही हैl इसने सदा से ही सर्वे भवन्तु सुखिन: का संदेश दिया है। किसी कवि ने बड़े ही सरल शब्दों में लिखा है कि,-
सदियों पहले देश हमारा, जगत गुरू कहलाता था। ज्ञान,भक्ति,और कर्मयोग का, सारे जग का दाता थाll सहिष्णुता थी व्याप्त रगों में, कण-कण सभी दिशाओं में। सारी वसुधा ही कुटुंब थी, बंधे न थे सीमाओं मेंll
परन्तु,आज के संदर्भ में जब प्रत्येक व्यक्ति,प्रत्येक परिवार,प्रत्येक घर,प्रत्येक राज्य और प्रत्येक राष्ट्र अपनी ढपली,अपना राग वाली नीति में चल रहे हैं,तथा स्वार्थ,विस्तारवाद,चौधराहट कायम करने की अंधी दौड़ में जी रहे हैं तो विश्व शांति के लिए अखंड विश्व की परिकल्पना करना मुंगेरी लाल के सपने जैसा प्रतीत होता है,लेकिन यह भी सच है कि कितना भी गहन अंधकार हो,वह सूरज से कभी भी जीत नहीं सकताl बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो,वह अच्छाई से विजयश्री का वरण कदापि नहीं कर सकती। इतिहास गवाह है कि,दुनिया में जो भी क्रांतियां हुई हैं,उनकी शुरुआत बहुत ही लघु स्वरूप से हुई है।
आज दुनिया खंड-खंड होने के चलते पूरी तरह से निराशा और अवसाद भाव से ग्रस्त है,तथा भय और अनिश्चितता के साए में सिसकती हुई जी रही हैl आज भौतिक साधन-सुविधाओं की पूरे विश्व में बेतहाशा प्रगति हुई है,लेकिन यह भी कटु सत्य है कि,जितनी भौतिक प्रगति हुई है उतनी ही अशांति, चिंता,असंतोष में वृद्धि हुई है। विश्व के खंड-खंड होने के कारण शारीरिक अस्वस्थता,मानसिक असंतुलन और भावनात्मक विकृति में भारी बढ़ोतरी हुई हैl मानवीय सद्गुणों जैसे सहकार,सहयोग,सहिष्णुता,समता भाव,सत्य आदि सभी स्तरों में अत्यंत गिरावट आ गई हैl ऐसे में विश्व शांति या अखंड विश्व की परिकल्पना बंद हो रही श्वांसों के लिए अमृत की बूंदों की तरह ही मानी जाएगी।
कितना अच्छा हो कि,सारा विश्व अपने संकीर्ण दायरे से बाहर निकलकर सर्व जन हिताय की भावना से अपना गुण,कर्म,स्वभाव अपना लेl आखिर सारा संसार एक ही ईश्वर द्वारा तो रचा गया है,फिर क्यों न सबके साथ ममता,समता,शुचिता का व्यवहार किया जाएl इसके लिए विश्व के खंड-खंड होने के कारणों को जानकर निदान की तरफ कदम बढ़ाने होगे।
यूँ तो विश्व के खंड-खंड होने के कई कारण दिखाई देते हैं,परन्तु मुख्य रूप से ३ कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी प्रतीत होते हैं-अशक्ति,अभाव,अज्ञानl
संसार में सदा से ही वीर भोग्या वसुंधरा और जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली मत्स्य न्याय जैसी युक्तियां अपनाई जाती रही हैं। जो सशक्त है, समर्थ है,वह अपने से दुर्बल पर प्रभुत्व कायम करना चाहता है। यह दुर्बलता बुद्धि,ज्ञान,विवेक,बाहुबल,धनबल किसी भी तरह की हो सकती है। इस कारण के समूल निदान के लिए दो तरफा प्रयास करने पड़ेंगे-एक तो अशक्त को सशक्त बनाने की दिशा में और दूसरे सशक्त द्वारा अशक्त का उत्पीड़न रोकने की दिशा में। उनके मन में यह भाव बिठाना होगा कि,सभी प्राणी ईश्वर की संतान हैंl प्रकृति ने किसी के साथ कोई भेद-भाव नहीं किया,फिर हम यह क्यों करें।
विश्व के बिखराव का दूसरा बड़ा कारण अभाव हैl गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि-
आरत काह न करहि कुकर्मू। मागहि भीख तजहि निज धरमूll
अर्थात अभाव की पूर्ति के लिए सभी तरह के उचित-अनुचित तरीके अपनाना। उदाहरण के लिए भारत और पाकिस्तान के रिश्ते को ही देख लीजिए। पाकिस्तान अपने अभाव की पूर्ति के लिए एन-केन-प्रकारेन कभी चीन से,कभी अमेरिका से,कभी संयुक्त राष्ट्र संघ से तो कभी अन्य मुस्लिम देशों से भ्रामक बात करके सहायता मांगता रहता है,और सहायता प्रदान करने वाले देश मनमाने तरीके से अपनी शर्तें थोपते रहते हैं। कमोबेश यही स्थिति दुनिया के अन्य देशों में तथा वैयक्तिक,पारिवारिक,सामाजिक आदि क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है। इस कारण को दूर करने हेतु भी दोनों दिशाओं के प्रयास की महती आवश्यकता हैl
विश्व के टूटने का तीसरा और सबसे प्रमुख कारण अज्ञान है। अज्ञान के कारण जनमानस न तो सोचने योग्य सोच पाता है,न बोलने योग्य बोल पाता है और न ही करने योग्य कर पाता है। इस तरह से मन,वचन,कर्म तीनों दूषित हो जाने से सभी स्तरों में विघटन शुरू हो जाता है। इस कारण को दूर करने के लिए पूरे विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाना पड़ेगा। इस हेतु भौतिक,आध्यात्मिक,मानसिक,व्यवहारिक सभी तरह के उपाय अपनाने पड़ेंगेl आध्यात्मिक निदान में गायत्री महामंत्र एक रामबाण औषधिसाबित हो सकता है। इसके अलावा स्वाध्याय,सत्संग,सेमिनार आदि माध्यमों से ज्ञान का प्रकाश फैलाने के प्रयास कारगर सिद्ध हो सकते हैं। यद्यपि,पहले भी सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में पिरोने के प्रयास किए गए हैं,पर जब तक राजनीतिक स्तर के साथ ही आंतरिक स्थिति में भी भावनात्मक और वैचारिक स्तर में परिवर्तन के प्रयास नहीं होंगे,तब तक सारे प्रयास वांछित परिणाम नहीं दे सकेंगें। प्रथम दृष्ट्याअखंड विश्वकी परिकल्पना एक असंभव-सा कार्य प्रतीत होता है,परन्तुकोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती` जैसी सकारात्मक सोच के चलते कुछ भी असंभव नहीं है,जरूरत है तो बस सच्चे प्रयास की।

परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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