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अनकही बातें

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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अनकहीं बातें बहुत जिंदगी की,
अन्तर्द्वन्द्व बहुतेरे अन्तस्थल छिपे
अवसीदना दर्द ए हाल जमाने के,
कचोटती कुरेदती चोटिल चीथड़े
मरुस्थल बनी आँखें वजूद को,
ख़ोजते खोदर छिप अपनी आप-बीती
मर्माहत ज़मीर ओ ख़ुद्दारियत अपने,
आईना बन अपारदर्शक दिलों में
रहस्य बन छिपे जिंदगी के अफ़साने,
ज़िल्लतें,दर्द ओ जख्म ए ढाए सितम।

लुटी खूबसूरत जवानी जिंदगी के,
सारे अरमान,मुस्कान और खुशियाँ
हताहत मंजिलें नित छल कपट धोखे,
शर्मसार हुई इन्सानियत ईमान सच
अपनों के दगा महाज्वाल में जले,
तब तक जब तक दग्ध राख़ न बने हम
उपहास का नंगा नाच देखा हमने,
अस्मिता क्षत-विक्षत रक्तरंजित पल
अनुराग राग-उपराग बन दफ़न सीने में,
सुषुप्त ज्वालामुखी बन उद्यत प्रस्फुटन
तन मन धन निज जीवन परहित अर्पण,
सब आबाद हुए मेरे सजाए आशियां
किलकारियाँ गूँजी बन इमारत तले,
लड़ियाँ खुशियों की लगी मुस्कान बन
भूले सब ऐशो-आराम के सुखद छत तले,
पुराने दिन,छाँव स्थल,रिश्ते सब
चकाचौंध भरी दुनिया विस्मृत लम्हें,
भूले नींव आधार जीवन तरु
अवशेष बस टीस देती बीती बातें,
यायावर नव जीवन पथ पर बचे
संघर्ष के बिताए अहर्निश परहित पल।

खड़े हम आज उस मुहाने पर,
ले नवजीवन द्रुतगति पथ अविरत
अबाध रनिवासर युगान्तर नूतन पथ,
किन्तु संवेदित परमार्थ निरत कीर्तिरथ
मुस्कान व सम्मान बन परमुख अधर,
अभिलाष की नवाश बन मानव मन
योगी सहयोगी उपयोगी ओ भारत बन,
सुरभित कुसमित कुसुम ‘निकुंज’ मन
सुखद यादों को समेटे अवसाद गम,
चिर बीते अनुभूत सीख नवनीत बन
शेष जीवन के अनुपम कुछेक क्षण।
बस यादें अन्तस्तल सुख दुःख की,
सहेजी गाँठ बन अनकही बातें॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥