कुल पृष्ठ दर्शन : 395

You are currently viewing नव हिन्दी नव सर्जना

नव हिन्दी नव सर्जना

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

*************************************************************

सुन्दर सुखद प्रभात है,राम राम सुखधाम।
हिन्दीमय सारे जहां,भारत है अभिराम॥

प्रमुदित है संस्कृत सुता,पुण्य दिवस पर आज।
हिन्दी हिन्दुस्तान का,प्रीति भक्ति आगाज॥

नव हिन्दी नव सर्जना,कालजयी साहित्य।
अलंकार नवरस ध्वनि,रीति गुणी लालित्य॥

रचना हो नित चारुतम,मर्यादित अनुकूल।
हिन्दी नित प्रेरक बने,नव समाजशुभ फूल॥

इन्द्रधनुष सतरंग सम,विविध विधा हो काव्य।
स्वस्ति लोक निर्माण मन,नवसर्जन मन भाव्य॥

हिन्दी भारत अस्मिता,एक राष्ट्र नित सूत्र।
बोले लिखें शान से,हिन्दी हिन्द सपुत्र॥

हिन्दी है गौरव वतन,सहज सरल मृदुभाष।
वैज्ञानिक मानक सरस,नव भारत अभिलाष॥

सारस्वत लेखन सदा,हिन्दी मन सम्मान।
निज भाषा हिन्दी लहै,देश लोक उत्थान॥

प्रगति राष्ट्र जग वे बने,निज भाषा अभिमान।
विरत राष्ट्र भाषा जगत,हो वजूद अवसान॥

राष्ट्र शक्ति हिन्दी मधुर,कण्ठहार जनतंत्र।
रोज़गार शिक्षा सुलभ,समझो जीवन मंत्र॥

हिन्दी कुमकुम भारती,लाल भाल बिंदास।
तजो आंग्ल उर्दू प्रणय,वरना जग उपहास॥

सविता हिन्दी अरुणिमा,लाओ पुनः विहान।
खिल निकुंज सुरभित कली,हिन्दी हिन्द महान॥

बने लोक भाषा जगत,हिन्दी भाष विलास।
अनुपम रचना सर्जना,गौरव हो इतिहास॥

शक्ति भक्ति रस पूर्ण नित,हिन्दी हो नवनीत।
तरुणाई नव चेतना,दिग्दर्शक नवप्रीत॥

आज पुनः संकल्प लें,मन हिन्दी स्वीकार।
सीखें सब भाषा विविध,पर हिन्दी सत्कार॥

कवि ‘निकुंज’ कवि कामिनी,लिख हिन्दी अविराम।
हिन्दी मय माँ भारती,भारत जग शुभ नाम॥

देवनागिरी लिपिका,वैज्ञानिक अभिराम।
पठन श्रवण लेखन समा,हिन्दी हो सत्काम॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply