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संकट में मानवता

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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विश्वास:मानवता, धर्म और राजनीति…

आज विश्व में मानवता की
धूमिल हुई है परिभाषा,
प्रेम सुधा रस पीने को
उठती है मन में अभिलाषा।

चहुँ ओर बस हिंसा के हैं
काले बादल मंडराए,
मासूमों के चेहरे पर है
डर की घोर निराशा छाए।

राजनीति की कुटिल चाल ने
मानव को दानव कर डाला,
भ्रष्टाचार का रोग भयंकर
अमृत भी हो गया है हाला।

कौन बुद्ध की राह चले और
गांधीवाद को अपनाए,
अंधकार की घोर निशा में
ज्ञान ज्योति का दीप जलाए ?

किसको मैं आवाज लगाऊं
कौन सुनेगा टेर हमारी,
सब मतलब के धनी यहाँ पर
अलग है सबकी दुनियादारी।

विश्वास अटल है मन में कि,
फिर से आएंगे तारनहार।
डूबती नईया मानवता की
ले कर जाएंगे उस पार।॥