कुल पृष्ठ दर्शन : 263

चीन से आर्थिक और राजनीतिक बहिष्कार आसान नहीं

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*****************************************************
एक कार्यालय में बहुत चतुर,होशियार और चालाक बाबू स्थानांतरित होकर आया। वह अपने कारनामों से कुख्यात रहा है,तो सब कर्मचारी अधिकारी के पास उस बाबू की समस्या लेकर आए। अधिकारी ने सबकी बात सुनी और पूछा अब रास्ता क्या है ?कुछ बोले-हम अपना स्थानांतरण करा लेते हैं,कुछ बोले-उसका स्थानांतरण यहाँ नहीं होना चाहिए,पर अधिकारी ने कहा-बिना पूर्व धारणा के निर्णय नहीं लेना चाहिए। अधिकारी ने कहा कि-हमारे पास बहुत विकल्प हो सकते हैं। हम कभी-कभी दुष्ट पत्नी का संग होने पर उससे अलग रह सकते हैं,या तलाक दे सकते हैं,पर इसी स्वभाव के यदि हमारे माँ-बाप,भाई-बहिन हो तो उनसे आप छुटकारा पाने के लिए क्या करेंगे ? क्या उनसे तलाक ले सकते हैं ? नहीं। इसका मतलब हमें विषम परिस्थितियों में समता भाव से सामना करना चाहिए। एक बात हमें कर्मसिद्धांत से समझना चाहिए कि जो हो रहा है,वह होता है,होगा। उसे हमें साक्षात भाव से-द्रष्टा भाव से स्वीकार करना चाहिए। क्या आप होने वाली घटना को रोक सकते हैं ?
आज बाबा रामदेव का कहना है कि चीन का हमें राजनीतिक और आर्थिक बहिष्कार करना चाहिए। हम भी चाहते हैं,पर करेंगे कैसे ? आज विश्व स्तर पर चीन का व्यापार फैला हुआ है। उसने हमारी कमजोरी का फायदा उठाकर अपना व्यापार फैलाया। आज बहुत सीमा तक विश्व में हर देश चीन के ऊपर आश्रित हो चुका है। जब उसकी जड़ इतनी अधिक विश्व में घर कर गयी है,तब उससे निजात पाना सरल नहीं होगा।
यह बात वर्ष १९६२ से चल रही है,और जितना बहिष्कार हुआ,उतना अधिक उसका उसे सहयोग मिल रहा है। आज भारत के सम्बन्ध चीन से अलग प्रकार के हैं। इतनी प्रतिकूल स्थितियाँ निर्मित करने के बाद भी हम उससे सम्बन्ध बनाने के लिए मजबूर हैं। हमने जापान,रूस,अमेरिका,ब्रिटेन,फ्रांस,
जर्मनी के साथ अन्य मध्य एशिया के मुस्लिम देशों से दोस्ती कर विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई,पर चीन से अपनी दूरी क्यों नहीं बना पा रहे हैं ? कारण साफ़ है कि,हम चीन के साथ इतने अधिक घुल-मिल गए हैं कि,हम तलाक लेने की स्थिति में नहीं हैं। आज हम विचार करें कि हम कितने अधिक किन-किन देशों के ऊपर आश्रित हैं,तब समझ में आएगा कि हमारा व्यापारिक सम्बन्ध चीन से अधिकतम है,और अनेक सामग्रियों में हम उस पर आश्रित हैं।
यह बात विगत ६ वर्ष से कई बार सामने आयी कि चीन हमारी सीमाओं को अतिक्रमित कर रहा है,घुसपैठ कर रहा है, उसके बाद भी हमारी क्या मज़बूरी है कि उससे सम्बन्ध नहीं तोड़ पा रहे हैं! हमें मालूम है कि,वह पाकिस्तान का समर्थक है,और उसे मदद देता है। संयुक्त राष्ट्र में उसको बचाता है,पर हम लाचार है। जो भी इसकी खिलाफत करना चाहते हैं,किस प्रकार उससे सम्बन्ध विच्छेद करें,वे खुल कर बताएं। अंतर्राष्ट्र्रीय स्तर पर हम सबको एक-दूसरे से सहयोग अपेक्षित है। कोई भी राष्ट्र पूर्ण रूप से स्वावलम्बी नहीं हो सकता है। हाँ हम कुछ वर्षों में परालम्बी न हों,यह प्रयत्न करना होगा। हमारा देश विपुल संस्थानों से बहुसंख्यक आबादी वाला देश है। कुछ वस्तुए हमारे देश में हैं,तो कुछ अन्य देशों में। आज क्यों विश्व के सभी देश भारत की ओर व्यापार के लिए देखते हैं,कारण कि यहाँ बहुल आबादी के कारण व्यापार की बहुत संभावनाएं हैं,और रही है।
इस समय ‘कोरोना’ संक्रमण के कारण समस्त प्रतिबन्ध लगने से हमारे पास धन होने के बाद भी सामग्री नहीं हैं,तो उस धन की क्या उपयोगिता ? कारण एक-दूसरे के सब पूरक और उपादेय हैं। ‘परस्परोग्रहो जीवानाम।’ इसका आशय कि एक जीव दूसरे जीव का उपकारी है। इसीलिए यह सब भाव प्रतिकूल अवस्था में आते हैं,अन्यथा अन्य देश हमारे लिए उपकारी होते हैं और हम अन्यों के लिए। सोचिए कि,क्या अभी हमने पाकिस्तान से व्यापारिक,सांस्कृतिक खेल आदि सम्बन्ध समाप्त कर लिए हैं,या पूर्ण रूप से कर सकते हैं! हाँ,हमें अब विकेन्द्रीकृत नीतियां अपनानी होगी और धीरे-धीरे पराधीनता से स्वाधीनता की ओर आना होगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply