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‘कोरोना’ का टीका:खुश खबर

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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‘कोरोना’ महामारी को ध्वस्त करने का ब्रह्मास्त्र अब भारत के हाथ में भी आ गया है। कोरोना के २ टीके,जो भारत में ही बने हैं,अब शीघ्र ही जरुरतमंदों को लगने शुरु हो जाएंगे। ३० करोड़ लोगों के लिए जो इंतजाम अभी हुआ है,उसमें उन ३ करोड़ लोगों को यह टीका सबसे पहले लगेगा,जो चिकित्सक, नर्स और मरीज़ों की सेवा में लगे रहते हैं। ये सच्चे जन-सेवक हैं। इन लोगों ने अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाई है। अब भी ये लोग उत्साहपूर्वक देश की सेवा करते रहें,इसके लिए जरुरी है कि सबसे पहले इनको सुरक्षा प्रदान की जाए। जाहिर है कि हमारे नेता लोग चाहेंगे कि इन सेवाकर्मियों के भी पहले इस टीके से उन्हें कृतार्थ किया जाए,लेकिन वे जरा अपनी तुलना इन वार्ड बाय और मरीज गाड़ियों के चालकों से करके देखें। ये लोग जब अपनी जान की बाजी लगाए हुए थे, तब ज्यादातर नेता अपने घरों में दुबके हुए थे। वे भूखे लोगों को खाना बांटने में भी संकोच करते थे। हालांकि,यदि वे फिर भी यह टीका पहले लगवाना चाहें तो उन्हें यह सुविधा दे दी जाए लेकिन उनसे लागत से भी दुगुना-चौगुना पैसा वसूल किया जाए, जिसका इस्तेमाल उस टीके को मुफ्त बांटने में किया जाए। यह ठीक है कि,करोड़ों लोगों को मुफ्त टीका देने में सरकार के अरबों रु. खर्च हो जाएंगे लेकिन यदि वह निजी अस्पतालों को यह छूट दे दे तो भारत में ३०-४० करोड़ लोग उच्च और निम्न मध्यम वर्ग के ऐसे हैं,जो हजार-२ हजार रु. खर्च करके यह टीका ले सकते हैं। इसके कारण जो राशि सरकार को मिलेगी,वह मुफ्त टीका लगाने में तो इस्तेमाल होगी ही,मुफ्त टीकाकरण का बोझ भी हल्का होगा। सरकारी टीकाकर्मियों की संख्या सिर्फ सवा लाख है। इतने ही टीकाकर्मी निजी अस्पताल भी जुटा सकते हैं। ५० साल से ज्यादा उम्रवाले लगभग ५० करोड़ और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को यह टीका देने की तैयारी हमारे स्वास्थ्य मंत्रालय ने ठीक ढंग से कर रखी है। यदि जरुरत पड़ी तो सरकार विदेशी कंपनियों से भी दवाइयां खरीद सकती है। यों भी कोरोना का हमला भारत में आजकल बहुत धीमा पड़ता जा रहा है। भारत के वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित यह टीका पश्चिमी टीकों के मुकाबले सस्ता और कम नखरेवाला है। यह भारत को तो महामारीमुक्त करेगा ही,पड़ौसी देशों और अफ्रीकी देशों की भी अपूर्व सेवा का अवसर भारत को प्रदान करेगा। भारत के लिए और एशिया-अफ्रीका के देशों के लिए नए साल की यह सबसे बड़ी खुश खबर है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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