संजय जैन
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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सारे देश को जो अन्न देता,
खुद लेकिन भूखा सोता
फिर भी किसी से कुछ,
कभी नहीं वो कहता।
क्या हालत कर दी उनकी,
देश की सरकार ने
कठपुतली सरकार बन बैठी,
देश के पूंजीपतियों की।
तभी उसे समझ न आ रही,
तकलीफ खेतिहर किसानों की
सारे देश को जो अन्न देता,
खुद लेकिन भूखा सोता।
जब भी विपत्ति देश पर आती,
अपना सब-कुछ वो लगा देते हैं
भले ही तन पर न हो कपड़ा,
पर खेत को तो बोता है।
सब-कुछ गिरवी रख देता,
पर फर्ज न अपना भूलता
और सभी की भूख को,
खुद भूखा रहकर मिटाता।
ऐसे होते हैं अपने देश के,
सारे ये किसानगण।
सारे देश को जो अन्न देता,
खुद लेकिन भूखा सोता।
बहिन-बेटी और बीबी के,
सारे गहने रख देते हैं
लाला-साहूकार के पास,
और कभी-कभी भूमि भीl
और नहीं छोड़ता हल,
चलाना अपने वो खेतों में
और छोड़ देता खेतों को,
ईश्वर के आशीष पर।
फिर चाहे कुछ भी पैदा हो,
उस ईश्वर की कृपा से
उठ पाएगा खेत गिरवी से,
या और रखा जाएगा।
पर खेती करना जीते-जी,
वो बंद नहीं करता है।
सारे देश को जो अन्न देता,
खुद लेकिन भूखा सोता।
नहीं समझ सकता कोई,
किसानों के दर्द को
कभी चलाया नहीं हल,
और न बहाया है पसीना।
वो क्या जाने देश के,
किसानों के हाल को
ऊपर से नीचे तक,
जो कर्ज में डूबा रहता है।
क्या जानें वो जो बैठे हैं,
एयरकंडिशन हालों मेंl
खुद को मसीहा कह रहे,
अपने मुँह से किसानों काll
परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।