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गाँव जा रहा गाँव

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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रेल की पटरी पर चलते नंगे पाँव,
देखो आज शहर से गाँव जा रहा है गाँव
पसीने में लथपथ धूल भरी रोटी,
भूख बड़ी गठरी पड़ी छोटी
चिलचिलाती धूप में चलते,
चाह कर भी आराम ना करते
खोजता फिरे इंसानियत की छाँव,
देखो आज शहर से गाँव जा रहा है गाँव।

आश्रयदाताओं ने हमसे आश्रय अपना छीन लिया,
चावल के दाने जो बिखराते थे उन्होंने ही बीन लिया
हमारे खून-पसीने की जो बिरयानी खाते थे,
खा गए भात हमारे भी वे जिन पर मरा हम करते थे
अमीर का बोझ जो सदा था ढोता,
आज वो बैठ मजदूर है रोता
चलने को मजबूर बिचारा जलती सड़क पर नंगे पाँव।
देखो आज शहर से गाँव जा रहा है गाँव…

सत्ता के तो बोल बड़े हैं,
लूटने वाले तो टूट पड़े हैं
कान खोल दुर्योधनों सुन लो,
हस्तिनापुर मिट जाएगा
छठी का दूध तब याद आएगा,
जब मजदूरों की टोली शहर ना आएगी
कहे ‘उमेश’ जन सेवा कर लो अमर होगा तेरा नाव,
देखो आज शहर से गाँव जा रहा है गाँव…॥

(इक दृष्टि यहाँ भी:नाव=नाम)

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं।अलकनंदा साहित्य सम्मान,गुलमोहर साहित्य सम्मान आदि प्राप्त करने वाले श्री यादव की पुस्तक ‘नकली मुस्कान'(कविता एवं कहानी संग्रह) प्रकाशित हो चुकी है। इनकी प्रसिद्ध कृतियों में -नकली मुस्कान,बरगद बाबा,नया बरगद बूढ़े साधु बाबा,हम तो शिक्षक हैं जी और गर्मी आई है आदि प्रमुख (पद्य एवं गद्य)हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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