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किसकी फितरत!

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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कभी साँपों को देखकर डर जाता था,
अब दो-चार साँप तो आस्तीन में ही पाल लेता हूँ।

उल्लूओंं को कभी अपशगुन मानने वाला मैं,
अब पूरे दिन-महीने-साल उल्लूओं के साथ ही बिताता हूँ।

कभी कुत्ते को भौंकते देखकर बुरा बहुत मानता था,
अब लोगों को दिनभर भौंकते देखकर भी फर्क नहीं पड़ता।

कभी गिद्धों पर दृष्टि पड़ते ही,अजीब घिन्न से भर जाता था मन,
अब दिनभर गिद्ध दृष्टि से देखते लोगों को चुपचाप झेल लेता हूँ।

कभी की काँव-काँव सुन कर,झुंड के झुंड को साथ देख कर चिढ़ जाता था,
अब चारों तरफ रोजाना होती इंसानों की काँव-काँव के कोलाहल को भी सरलता से ले लेता हूँ।

कभी-कभी सड़कों पर सांडों को भगदड़ मचाते देख कर,
अपने को बचाने की जुगत भिड़ाता था मैं;
पर अब सांडो को हर दिन सींग से पकड़ कर भिड़ जाता हूँ मैं।

बन्दर पहले जब बड़े-बड़े समूह में आ कर, दांत किटकिटा कर डराते थे,
चीजों की लूट मचाते थे,बड़ी मुश्किल से मैं अपनी चीजें बचाता था,
पर अब बंदरों को अपनें ही हाथ से चीजें बांट कर आता हूँ।

कभी गधों को सिर झुकाए चुपचाप बोझ उठा कर चलते देख कर मन ग्लानि से भर जाता था,
अब खुद ही गधों की तरह जाने कितना बोझ उठाए,सिर झुकाए बस चुपचाप चलता ही जाता हूँ।

सड़क पर बीचों-बीच बेफिक्र बेपरवाह होकर, रास्ते को रोक कर चलती,
भैंसों के झुंड को देखकर बड़ी कोफ्त होती थीं;
पर अब भैसों के बड़े-बड़े झुंडों के पीछे मजबूर हो कर चलते वक़्त अब कोफ्त नहीं होती।

पता नहीं! बचपन से बड़े होते होते,कितने ही जानवरों की फितरत देख कर नफ़रत होती थी,
मन करता था कि कभी मैं इन जानवरों के आचरण को नहीं अपनाउंगा,
पर कितना मजबूर है इंसान!

वक़्त के साथ सभी जानवरों का किरदार खुद चुपचाप निभाता है,
मन इस हकीकत से रूबरू हो कर सचमुच वितृष्णा से भर जाता है॥

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैl आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैl नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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