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आईना

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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मैं इधर-उधर देखता रहा। मेरे आस-पास कोई भी नहीं था। फिर मुझे यह आवाज,कैसे सुनाई दे रही है। किसकी है यह आवाज…! मुझे कोई भ्रम तो नहीं हुआ। मैं परेशान-सा हो उठा।
मैंने संदेह मिटाने आईना मंगवाया। आईना देखा तो,मुझे मेरी सूरत दिखाई दी,जो मुझसे कह रही थी-
“तू किसे देखता है,
यार,खुद को भूलकर।
आ इधर आ,मुझे देख,
मैं तेरा ही,साया हूँll”
मैंने आईने से कहा-“मित्र तू कौन है ? मुझे तो आईने में मेरी ही सूरत नजर आ रही है।”
आईने ने मुझसे कहा-“यही तो बात है। तू हर दिन सबसे मिलता है। परिवार से,रिश्तेदारों से,मित्रों से,जान-पहचान वालों से,सभी से, परंतु क्या खुद से,कभी मिलता है। सुख-दुःख आपस में बांटता है। आखिर दिल की बातें तो तू किसी से कर नहीं सकता,तो अपने साये से क्यों नहीं करता ? आखिर मैं कोई अंजान नहीं,तेरा ही तो साया हूँ।”
मैंने आईने से कहा-“मेरे अनजान,मेरे हमसाया। आखिर तू मुझे बता,तुझसे क्यों मिलूं और मिलकर क्या बातें करूँ। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है।”
आईने ने कहा-“देख परेशान मत हो,मैं तुझे उपाय बताता हूँl आज तू सभी काम छोड़ और सिर्फ मुझसे मिल,बातें कर,अपना अच्छा-बुरा बता। सुख और दु:ख बता,शायद तुझे मैं,तेरी खूबियाँ और तेरी कमियां बता सकूँ। एक सखा की तरह।”
मैं सोच में पड़ गया। फिर विचार किया,रोज तो सभी से मिलता हूँ।आज का दिन अपने हमसाये से भी मिल लेता हूँ। क्या फर्क पड़ता है, हर नए कार्य में कुछ सीखने को मिलता ही है।
मैंने आईने से कहा-“चल आज मैं और सिर्फ तू रहेंगे,मिलेंगे। आज का दिन सिर्फ,तेरे नाम करता हूँ।”
सुनकर आईना प्रसन्न हो गया और कहा-“वाह आज हम दोनों मिलेंगे,मजा आएगा।”
आईने ने कहा-“सुनो।अभी तुम क्या,महसूस कर रहे हो,मुझे बताओ। सच बताना।”
मैंने कहा-“यार शरीर में अकड़न-सी हो रही है। ठंड बहुत है ना इसीलिए,तो बिस्तर में पड़ा हूँ।”
आईने ने कहा-“उम्र का तकाजा है,ऐसा होता है। अब ऐसा करो ,बिस्तर छोड़,पानी पी और हाथ-पैरों की खुद मालिश करो। किसी को भी आवाज मत दो। एहसान नहीं लो किसी का।”
मैंने वैसा ही किया,शरीर हल्का लगने लगा।
आईने ने कहा-“अब बोलो,कैसा महसूस कर रहे हो ?”
मैंने कहा-“मित्र,अब अच्छा लग रहा है। अच्छा बता तो,आज तक मुझसे क्यों नहीं मिला था ?”
आईना-“मुझे तुझ पर दया आ गयी है। तूने भी तो मुझसे कभी मिलने,साथ रहने की कोशिश नहीं की।”
मैंने कहा-“मेरे मित्र कई दिनों से उदास हूँ। कुछ अच्छा नहीं लगता।”
आईना-“अच्छा,क्यों उदास है,बता।”
मैंने उससे कहा-“यार क्या बताऊँ ! पत्नी जी कई दिनों से,अपने छोटे बेटे के पास गयी है। मुझे उनकी बहुत याद आ रही है।”
आईना कहता है-“बस इतनी-सी बात है। तेरी पत्नी जिसके पास गयी है,वह तुम्हारा ही बेटा है। जैसे तुम उनकी याद कर रहे हो,वैसे ही उन्हें अपने बेटे की याद आती होगी,जो परदेश में है। तुम एक काम करो,पत्नी को फोन लगाओ,उनका हालचाल पूछो। प्यार की बातें करो। पत्नी के साथ बिताए अच्छे समय की याद करो। तुम्हारा अभी तक साथ निभाने के लिए उनको धन्यवाद दो। प्यार दोगे तो प्यार पाओगे। ये सभी करके तो देखो।”
आईने से मैंने कहा-“मित्र तुम तो मेरे लिए कहीं से भी अनजान नहीं हो। तुम तो मेरे हित की बात करते हो। मेरे दिमाग में तो ये सभी बातें आयीं ही नहीं। बहुत धन्यवाद,मित्र तुम्हारा।”
आईने ने जवाब दिया-“मैं तुम्हारे लिए अनजाना नहीं हूँ। मैं तुम्हारा ही तो साया हूँ। तुमसे जुदा कभी रहा ही नहीं। हाँ,यह सच है कि तुम ही मुझसे मिलना नहीं चाहते थे। जैसा मैंने कहा है,वैसा करो और आनंद पाओ।”
हमारा पूरा दिन कैसे बीता,पता ही नहीं चला। हाँ,उसने रूखसत होने से पहले मुझसे कहा था-“जब भी तुम्हें खुद से मिलना हो तो मुझे याद कर लेना। मैं तुम्हारे सभी सुख-दु:ख में साथ हूँ। मैं कोई गैर नहीं, आईना हूँ मैं,यार तुम्हारा…।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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