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अब लाऊँ कहाँ से कृष्ण तुम्हारे…?

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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वस्त्र फटे और घायल है मन,
भटक रहा हर गली घर-आँगन
दबी बगल उम्मीदों की पोटली,
है घूम रहा पसराकर दामन।
बह रहे नयनों से अविरल धारे,
अब लाऊँ कहाँ से कृष्ण तुम्हारे…?

यह जीवन एक संग्राम हो गया,
कदम-कदम निष्प्राण हो गया
कितनी पीड़ा है इस दिल में,
साँसों का चिर विश्राम हो गया।
जीवन के द्वार को मृत्यु निहारे,
अब लाऊँ कहाँसे कृष्ण तुम्हारे…?

तू कृष्ण के महल कैसे जाएगा,
अब कौन गले बढ़ के लगाएगा
छुपा देना कहीं अपनी पोटली,
ये कच्चे चावल कौन खाएगा।
तुम गड़ जाओगे शर्म के मारे,
अब लाऊँ कहाँ से कृष्ण तुम्हारे…?

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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