डॉ.सत्यवान सौरभ
हिसार (हरियाणा)
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लुके-छिपे अच्छा नहीं,लगता अब उत्पात,
कभी कहो तुम सामने,सीधे अपनी बातl
भूल गया सब बात तू,याद नहीं औकात,
गीदड़ होकर शेर की,पूछ रहा है जातl
मेरी ताकत लेखनी,तू रखता हथियार,
दोनों की औकात को,परखेगा संसारl
शीशों जैसे घर बना,करते हैं उत्पात,
रखते पत्थर हाथ में,समझेंगे कब बातl
गायब प्यादे सब हुए,सदमे में सरदार,
बदली चालें मात में,मरने के आसारl
एक बार ही झूठ के,चलते तीर अचूक,
आखिर सच ही जीतता,बिन गोली बन्दूकl
खुद को खुद ही फूंकते,लगा रहे हैं आग,
उलझे सच्ची बात पर,समझे खुद का दागl
सच से आँखें मूँद ली,करता झूठ बखान,
गिने गैर की खामियां,दिया न खुद पर ध्यानl
दगाबाज़ मक्कार के,देखो ये अंदाज़,
रस्सी कब की जल गई,बाकी है बल आजl
अगर कहानी ठीक से,गढ़ लेता कुछ यार,
भरा घड़ा ना फूटता,तेरे घर के द्वारl
बाहर बनता चौधरी,घर न मिले सत्कार,
कागज़ की कश्ती चढ़े,मरने को तैयार॥