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व्यवस्थाओं से डर लगता है अब तो!

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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     राजा महल के दालान में टहल रहे थे, उनको दिखा कि एक गरीब व्यक्ति ठण्ड से काँप रहा था। राजा ने अपने नौकर से कहा कि,उस गरीब को ठण्ड लग रही है,उसे कम्बल की व्यवस्था कर दो॥ जी हुज़ूर कहकर उसने अपने तत्कालीन अधिकारी से राजा की बात पहुंचाई। अधिकारी ने मंत्री को,मंत्री ने सम्बंधित विभाग के मंत्री को सूचित किया। उस मंत्री ने वित्त विभाग से बजट माँगा। बजट की स्वीकृति पर क्रय विभाग ने आदेश जारी किया,कम्बल आया और उसी क्रम से स्टोर में आवक-जावक हुई। उसके बाद अधिकारी को और अधिकारी ने नौकर को दिया। नौकर देने गया गया,तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। राजा ने मौत पर दुःख व्यक्त किया और एक जांच कमेटी बैठा दी, और उस रिपोर्ट का इंतज़ार अभी तक है। और हाँ,उसकी मौत पर राजा की तरफ से अन्त्येष्टी का पैसा जल्दी दिया गया और उसका कोई न होने राजकीय अन्त्येष्टी हुई।

वर्तमान में हमारे देश में कुछ ऐसी ही व्यवस्था का सामना करना पड़ रहा है। वैसे काम करने वालों की ही आलोचना होती है। जो जितना पढ़ा-लिखा हो,उसे उतनी अधिक भ्रांतियां होती है। शायद हमारे प्रधान सेवक कोई भ्रम वाले नहीं हैं,दूसरा जबरदस्त नेता होने से उनके सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं। जिसने भी बोला,उसके पीछे तीन सी लग जाती है। हमारे प्रधान सेवक दोनों प्रकार से बोलते हैं जिससे कुछ तो सही निकलेगा। जो राजा मंत्रियों और सचिवों से मंत्रणा करने के बाद स्वविवेक से निर्णय लेते हैं,उसके परिणाम दुखदायी होते हैं।
प्रधान सेवक अपने गुप्तरों पर बहुत भरोसा करते हैं,और वे राजा की तीसरी आँख होती है। उनको देश- विदेश पल-पल की की जानकारी होती है। राजा हमारे तकनीकी में महारत रखते हैं। दिन-रात मोबाइल, व्हाट्सअप,ट्विटर,इंटरनेट से जुड़े भी हैं और दिन रात टी.वी. के माध्यम से देश की दुर्दशा की जानकारी रखते हैं,पर इस समय वे सत्ता के मोह के कारण धृतराष्ट्र बने हैं। उनको दृष्टि मिली है।
विगत २ माह से अधिक समय हो चुका,करोड़ों प्रवासी कुशल कारीगर जो अपने घरों को जाना चाहते थे,उनकी सुव्यवस्था शासन द्वारा कहीं शुल्क शहित और रहित बिना एहतियात के जानवरों से बदतर हालत में अपनी प्रशंसा के साथ की गई। वे किन मानवीय विपदाओं से गुजर रहे हैं,उनके दुखों को देखकर उनको अपने सुविधायुक्त आवास में गर्मी महसूस हो रही होगी,नहीं समझा गया।
जो राजा दिन-रात शेर जैसा दहाड़ता था, आज पता नहीं न गुर्राता है,और न कुछ बोलता है। वर्तमान में देश में निहायत निराशा का वातावरण बना हुआ है,कारण इन अव्यवस्थाओं से हजारों लोग अकाल काल के गाल में समा गए। जब राजा अर्घावतारन का अधिकार रखता है,तब उसे असिप्रहारन के लिए भी तैयार रहना चाहिए। इस समय देश में सुमंगल का वातावरण नहीं है। दिन- रात तनाव,रोगियों का संक्रमण,मरण के अलावा अस्पतालों में इलाज़ में होने वाली अनियमितता,मरीज़ और मुर्दा एकसाथ, भोजन व्यवस्थाओं में सुबह से किया जाने वाला इंतज़ाम दोपहर तक,भला हो स्वयंसेवी संस्थाओं का उन्होंने लाखों-करोड़ों को भूख से मरने से बचाया। इस समय भ्रष्टाचार का बोलबाला बहुत है। इस समय अनिश्चितता का जो वातावरण बना हुआ है,इस कारण आंतरिक असंतोष बहुत है। आर्थिक पहिया धंस गया है। रोजगार बेरोजगार हो गए, जितना इलाज हो रहा उससे अधिक मर रहे, पर सफलता का श्रेय हासिल करने में अब अग्रसर हैं। किसी ने कोई प्रमाण-पत्र दिया,तो वह उपलब्धि हो जाती है,और यदि विशेषज्ञ सलाह दे तो वे देशद्रोही-बाधक हैं।
यदि राजा दुराग्रही (हठी) न हो तो अच्छी तरह विचारपूर्वक की हुई मंत्रणा से अवश्य कार्य सिद्धि होती है,पर राजा हठी होने से असफलता का सामना कर रहे हैं। एक झूठ को कई बार बोला जाए तो वह सच लगने लगता है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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