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जी ना सकूंगी तेरे बिन मनमीत

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मन मन्दिर में मनमीत मेरे मैं तुझे सजा कर रखी हूँ,
सुन्दर सलोना रूप तुम्हारा,मूरत बना कर रखी हूँ।

तेरे ही नाम को मैं,सुबह और शाम करती हूँ याद,
अब मेरी जिंदगी को सँवार दो या कर दो बर्बाद।

छूट गया बाबुल का आँगन,छोड़ आई महल आज,
आ गई हूँ मैं अब तेरी शरण में,रखना मेरी लाज।

मिलने से पहले हम दोनों,थे नदी का दो किनारा,
अब मिल गए साथ में,भगवान देंगे दोनों को सहारा।

मेरे मन मन्दिर में तुम,रहकर प्रेम जगाए हो,
प्रेम का गीत सुना कर तुम मुझको रिझाए हो।

जी ना सकूंगी तेरे बिन,प्रेम का दीप जलाए रखना,
प्रेम का दीप जलाए हो तो,प्रेम ज्योति बुझा न देना।

दोनों मिले हैं,फूलों का महल बनाऊँगी,
प्रेम भरे आँगन में,नन्हें फूल खिलाऊँगी।

सारे जहाँ में,मौसम सुहाने तो आते-जाते हैं रहते,
जैसे हम दोनों एक-दूजे के दिल में हैं मुस्कुराते।

मेरे मन मन्दिर में रहने वाले,यूँ ही प्यार जताते रहना,
तन-मन-जीवन सौंपा तुझको,मन में यादें रखना।

सभी खुशियाँ मिलती हैं मनमीत तुम्हारी बाँहों में,
मैं नयन बिछाए रखती हूँ मनमीत तुम्हारी राहों में॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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