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अपने दिल को रोते हैं

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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एहसासों के नील समंदर, और बेख़ुदी के गोते हैं,
नम सतह हवाओं की कुरेद, चल प्यार आसमां बोते हैं।
बैठी आरज़ू की डोली, अरमानों की भोली दुल्हन
जज़्बातों की शमाँ जला कर, हम अपने दिल को रोते हैं…।

ये दिल मुहब्बत की हवेली, खुशियों की झूमर सजाए है
प्रेम झरोखा झिनी-झिनी लेकिन, दर नफरत नहीं बनाए है,
इंसानियत पे मरने वाले, आशिक़ ऐसे ही होते हैं।
हम अपने दिल को रोते हैं…

होती बेबस तकदीर बेदम, कब! ठहरा हाथ लकीरों में
मत खोज आवारापन में हूँ, बंधता न रूह जंजीरों में
आँखें खुलती कहकशां में, चंदा के झूले सोते हैं।
हम अपने दिल को रोते हैं…

ये जिंदगी इक जुनून हुआ, मशवरा भी नहीं लेती
जीने के लिए जो जीते हैं, उनका भी पता नहीं देती
कुछ मुर्दे से कुछ घायल जो, अश्कों में हमें डुबोते हैं।
हम अपने दिल को रोते हैं…

होता है क्या खूब तमाशा, ख्वाबों के लगते मेले हैं
सब्ज़ सुहाना आगे रखते, रूखे सब पीछे धकेले हैं
सूखे को पानी दे कर अब, हरियाली में हम खोते हैं।
हम अपने दिल को रोते हैं…

लफ़्ज़ों की तुरपायी कर जो, लफ़्फ़ाजी चीथड़े सीते हैं
तोड़ कायदा वह ही कहते, उसूलों में हम जीते हैं
बंद कहाँ खुशबू होती है, जो गुल में सुई चुभोते हैं।
हम अपने दिल को रोते हैं…॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।