देवश्री गोयल
जगदलपुर-बस्तर(छग)
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अमूर्त अनगढ़ को,
करती साकार…
देती नया रूप,
जन्म देकर…
‘माँ।
नया जन्म भी,
लेती है खुद…
बत्तीस बन्धन,
तोड़ कर अपने…
शरीर से अलग करके,
शिशु से अपने…
जुडी रहती है,
माँ।
आँसू के एक,
कतरे के लिए…
अपने बच्चे की खातिर,
जान सुखा लेती है…
भले बदले में,
जान चली जाए…
परवाह नहीं करती है,
माँ।
वो शून्य को,
भर देती है…
रिक्त हो कर भी,
सबको सींचती
रहती है…
तभी तो शीश नवाते,
ईश्वर भी उसके चरणों में…।
शिवत्व की पहली,
पायदान होती है
माँ॥
परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”