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हटी तलाकी कालिमा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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पास हुआ तलाक बिल,खिले अधर मुस्कान।
इस्लाम बहू बेटियाँ,कानूनी सम्मानll

नामर्दी तलाक तीन,नारी दोहन अस्त्र।
ध्वस्त आज अपराध बन,कानूनी बह्मास्त्र॥

नारी गृह सम्मान है,बेटी बहू व अम्ब।
नहीं खिलौना मर्द की,जीवन का अवलम्ब॥

आज मुक्त नरवेदना,नारी हैं इस्लाम।
इल्म यान उड़ व्योम में,प्रगति पंख अभिराम॥
तीन तलाक के दंश को,सही हजारों वर्ष।
ऐय्याशी नर सोंच को,नष्ट किया संघर्ष॥

नारी अब अबला नहीं,चाहे कोई धर्म।
वस्तु नहीं उपभोग की,सहे मर्द दुष्कर्म॥

नारी न निज संपदा,दिया हलाला बेच।
भोगी नर हो बेवफ़ा,लगा मज़हबी पेंच॥

पढ़ी-लिखी निज अस्मिता,अधिकारी सम्मान।
समझ दूध की मक्खियाँ,फेंक दिया गृह शान॥

लगा तमाचा कोर्ट की,अब कानूनी जाल।
नारी अब तलाक मुक्त,हो जु़ल्मी बदहाल॥

मुस्लिम समाजी नारियाँ,नहीं बनो मज़बूर।
अब हलाला ज़ुल्म को,नहीं मिटाना दूर॥

दे निकुंज बधाईयाँ,संघर्ष हुई है जीत।
हटी तलाकी कालिमा,गूँजी नारी संगीत॥

सबकी अपनी जिंदगी,जीना निज अधिकार।
जिसने दी जीवन हमें,उसका हो सत्कार॥

मुस्लिम नारी ख़ौफ में,थी तलाक विकराल।
धन्य कोर्ट सरकार है,किया अंत तत्कालll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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