विजयलक्ष्मी विभा
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
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बहुत पुरानी है यह पीड़ा,
अब इसमें कर दो परिवर्तन।
मेरे मन को पंथ बना कर,
समय कुचलता जाता क्षण-क्षण
फेंक हृृदय के फुटपाथों पर,
सोई पीड़ाओं पर कंकण।
जाग-जाग उठतीं वे लेकर,
वही पुराना अपना क्रन्दन॥
वैसे ही मरती आशाएँ,
वैसे ही आते हैं सपने
वैसे ही होते जाते हैं,
सभी पराये मेरे अपने।
वैसे ही चलता जाता जग,
वैसे ही हैं सारे बन्धन॥
मैं न मांगती ख़ुशी किसी से,
चाह रही हूँ कुछ नवीनता
दु:ख हों या हों सुख जीवन के,
वांछ्य न उनकी मुझे क्षीणता।
जो कुछ आवे मेरे सन्मुख,
सदा दिखाई दे वह नूतन॥
मैं रोती हूँ इसीलिये बस,
नहीं बदलता मेरा जीवन
होता जाता और पुराना,
अनबदला ही मेरा तन-मन।
बहते हैं आँसू भी खारे,
मिलता नहीं उन्हें मीठापन॥
सदा एक सी पीड़ा सहते,
पीड़ा भी हो जाती निर्धन
पीड़ित के भी नहीं हृदय में,
रहता उसके प्रति सम्मोहन।
पीड़ा हो तो ऐसी जिससे,
घटे न मेरा उस पर चिन्तन॥
अब इसमें कर दो परिवर्तन…
परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।