तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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जीवन और रंग…

रंग प्यार का बरसा,
अब की होली में
उमंगित मन हरषा,
अब की होली में।
चमके चाँद का,
सुंदर मुखड़ा
चाँदनी ने निरखा,
अब की होली में।
साजन के दिल में,
सजनी का
दिल धड़का,
अब की होली में।
आए नहीं,
परदेश से प्रियतम
गोरी का मन तरसा,
अब की होली में।
निकली घर से,
मस्तों की टोली
गली-गली में जलसा,
अब की होली में।
सदभाव की
पुनी काते।
चले प्रीत का चरखा,
सबकी होली में॥
परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।