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कलियुग की महाभारत

मच्छिंद्र भिसे
सातारा(महाराष्ट्र)

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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….

सुनो मित्र! कृष्ण हमारे,
घोर कलियुग आ गया…
द्वापर युग ने फिर एक बार,
कलियुग में जनम लिया।

देवकी ने दिया कंस को जन्म,
पद्मावती ने कृष्ण को पा लिया…
मथुरा वृंदावन में तब्दील है,
द्वारिका में अनर्गल गिर गया
कुंती के सौ पुत्र बने कुटिल,
पाकर पांडवों को गांधारी से
धृतराष्ट्र का समय बन गया जटिल,
पांडू के बदहाल यहाँ पर
कौन देश चला जाए ?
न ही दिखे कोई दिशा,
यह विनाश अब सहा न जाए
अपने ही पुत्र अब अपने न रहे,
हे प्रभु! एक बार फिर महाभारत हो जाए।

सुनकर अरज पांडू की
कलियुग में महाभारत फिर से हुआ खड़ा,
फर्क सिर्फ इतना-सा था,
अर्जुन नहीं,बल्कि श्रीकृष्ण दुविधा में था पड़ा,
द्वापर युग के श्रीकृष्ण की
कलियुगी अर्जुन ने जगह ली,
द्रोणाचार्य अब न थे कौरवों के साथ
पांडवों को अब चक्रव्यूह की शिक्षा दी,
अर्जुन ने गुरु की शिक्षा को सिरसावंध्य माना,
बेईमानी,भ्रष्टाचार,झूठ,फरेब को
इस महाभारत के हथियार जो जाना।

श्रीकृष्ण ने जब सामने देखा पांडवों को,
ईमान,सच्चाई,अच्छाई और
इंसानियत के शस्त्र सब अब विफल हुए,
कैसे युद्ध करें इस कलियुग में इनसे
सोचकर अर्जुन के शरण में चल दिए,
मुस्करा रहे थे अर्जुन,रूप भी था नया
डरो न मित्र मेरे! तुमने अब मुझको जो पाया,
हाथ में न लेना सुदर्शन ले लो राजासन
युद्ध में पक्की जीत होगी तुम्हारी,
पर जीत के बाद मेरा ही हो शासन।

मानकर बात अर्जुन की आज,
श्रीकृष्ण हो गए अब तैयार
जीना चाहता है हर एक यहाँ,
कहने लगे मेरा भी हो जाएगा स्वप्न साकार।

दिन में युद्ध न करना,
रातें ही सिर्फ हमारी हैं,
रात में रंग शबाबी, ख्वाब नवाबी हो,
फिर कितना भी बड़ा महाभारत हो,
जीत सिर्फ हमारी ही हमारी है।
वंदन किया अर्जुन को निकाला पहला तीर,
भ्रष्टाचारी हुआ श्रीकुष्ण कहलाया सबसे वीर
बेईमानी के तीर ने हौंसला इतना बढ़ाया,
पांडवों की सेना को भी आपस में लड़वाया
विश्वासघाती मुस्कान देखकर गांधारी भी हँस पड़ी,
बेचारी कुंती पांडव नहीं कौरवों के लिए रो पड़ी
घमासान युद्ध हो रहा था कलियुग में,
बेईमान बनाम ईमान और सच्चाई-लुकम-छिपाई में,
नतीजे वही निकालें जो अर्जुन ने थी कही
कुटील अर्जुन-श्रीकृष्ण कौरव थे बने,
पांडव सारे ढेर थे कौरवों की जीत हुई।

पांडव! पांडव! चिल्लाता हुआ,
स्वप्न से जब मैं जागा
दीवार पर टंगी द्वापर युग की,
तस्वीर देखने द्रुतगति से भागा
हाथ में था सुदर्शन श्रीकृष्ण के,
हाथ जोड़े चरणों पर अर्जुन को देखा
मुस्करा रहे थे श्रीकृष्ण देख मुझको,
मैं अपनी रुलाई को रोक न सका
कि एक गुहार द्वापर के श्रीकृष्ण को,
कलियुग में भी सतयुग-द्वापर के अंश रखना,
जीना चाहते हैं सभी,सबको ही खुश रखना॥
(इक दृष्टि यहाँ भी:पद्मावती=कंस की माँ, बदहाल=बुरे हालात,सिरसावंध्य=सर आँखों पर लेना या स्वीकार करना,राजासन=राज्य पर पूरा अधिकार,शबाबी=जवानी या जोशीले,नवाबी=अमीरी,अनर्गल=जहर)

परिचयमच्छिंद्र भिसे का जन्म ३ मई १९८५ को भिरडाचीवाडी (तहसील वाई,जिला सातारा) में हुआ है। महाराष्ट्र से संबंध रखने वाले श्री भिसे का स्थाई बसेरा वर्तमान में भिरडाचीवाडी(पोस्ट भुईंज) में ही है। आपको मराठी,हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। शहर भिरडाचीवाडी निवासी श्री भिसे ने एम.ए.(हिंदी),बी.एड. एवं `सेट` (हिंदी)की शिक्षा प्राप्त की है और कार्यक्षेत्र में अध्यापक हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप महाराष्ट्र में पाठ्यपुस्तक निर्माण में समीक्षक सहित सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल में सक्रिय कार्य(अध्यापक-छात्र प्रतियोगिताओं के आयोजन-नियोजन में)करते हुए अध्यापकों के लिए मार्गदर्शक के रूप में भी उपलब्ध हैं तो हिंदी विषय की कृति पुस्तिका के निर्माण और गणेशोत्सव मंडल में भी गत ७ साल से मार्गदर्शक की सफल भूमिका में हैं। साथ ही छात्रों के लिए विभिन्न वरिष्ठ साहित्यकारों की करीब १५ हजार रुपए की किताबें नि:शुल्क उपलब्ध कराकर पठन के लिए प्रेरित किया है। इनकी लेखन विधा-गीत,कविता,कहानी, एकांकी,हाइकु और मुक्तक भी है। आपकी रचनाएं देशस्तर की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो आपको सलूम्बर(राजस्थान)द्वारा आयोजित बाल साहित्यकार सम्मान समारोह एवं काव्य सम्मेलन में विशेष सहभागिता हेतु स्मृति चिह्न,महाराष्ट्र राज्य हिंदी अध्यापक महामंडल से अध्यापक निबंध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार के साथ ही राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह(चितौड़गढ़)में महाराष्ट्र के प्रतिनिधित्व हेतु स्मृति चिह्न एवं किताबों की भेंट,जिला स्तरीय हिंदी अध्यापक वक्तृत्व प्रतोयोगिता में सम्मान तथा वर्ष २०१३ से २०१७ तक सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल द्वारा कक्षा दसवीं में `हिंदी` विषय के विशेष परिणामों को लेकर भी सम्मानित किया गया है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय मच्छिंद्र भिसे की विशेष उपलब्धि एक त्रैमासिक पत्रिका का सह-सम्पादक होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों को अभिव्यक्ति देना,उपयोग सामाजिक हित हेतु करना और मात्र हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’,महादेवी वर्मा हैं तो बाल साहित्यकार राजकुमार जैन `राजन` एवं तानाजी काशीनाथ सूर्यवंशी ‘ताका’ हैं। इनकी विशेषज्ञता-धन से ज्यादा मानव धन कमाने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“सरस्वती का सेवक हूँ। आज देश दुगनी गति से विकास कर रहा है,परंतु राजनीतिक व्यवस्था के कारण अनेक मुश्किलों का सामना जनता को करना पढ़ रहा है,जो बहुत ही घातक है। मेरे जीवन को स्तर हिंदी विषय अध्यापक होने के कारण ही मिला है। हिंदी ही मेरी पहचान है। पूरे विश्व ने हिंदी को अपनाया,परंतु पूरे भारतवासी इसे अपनाने में हिचकिचा रहे हैं,फलस्वरूप राष्ट्रीय भाषा होते हुए भी ‘राष्ट्रभाषा’ का दर्जा नहीं मिला है। अहिंदी राज्यों में शिक्षा से हिंदी विषय को ही हटाने का प्रयास जारी है। इस समस्या को मिटाने हेतु हिंदी का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार आवश्यक है।

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