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अब कैसे कृष्ण,कैसे राम निकलेगा

सलिल सरोज
नौलागढ़ (बिहार)

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तेरा न बोलना बहुत देर तक खलेगा,
एक न एक दिन तेरा घर भी जलेगाl

नज़र बंद हो अपनी बोई नफरतों में,
फिर रहीम और कबीर कहाँ मिलेगाl

चाँद को चुरा के रात को दोष देते हो,
इंतज़ार करो,आसमाँ भी पिघलेगाl

जाति,धरम,नाम सबसे तो खेल लिया,
अब कैसे कृष्ण,कैसे राम निकलेगाl

पानी,हवा,मिटटी सब तो बँट गए हैं,
किस आँगन में अब गुलाब खिलेगाl

सबको बदल दिया खुद को छोड़ के,
सच को झूठ से और कितना बदलोगेll

परिचय-सलिल सरोज का जन्म ३ मार्च १९८७ को बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)हुआ है। आपकी आरंभिक शिक्षा कोडरमा (झारखंड) से हुई है,जबकि बिहार से अंग्रेजी में बी.ए तथा नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए सहित समाजशास्त्र में एम.ए.भी किया है। एक निर्देशिका का सह-अनुवादन,एक का सह-सम्पादन,स्थानीय पत्रिका का संपादन एवं प्रकाशन किया है। सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र ही आपकी सम्प्रति है। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिशकरते हैं। ३० से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में इनकी रचनाओं का निरंतर प्रकाशनहो चुका है। भोपाल स्थित फॉउंडेशन द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम २० में आपको स्थान मिला है। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।

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