हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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उल्टी दिशा में बह रही नदियाँ, बिगड़ता प्रकृति का संतुलन, अब हंस नहीं; कौआ मोती खा रहा है।ये जमाना नया जरूर है, पर बहुत ही नकारात्मकता को लेकर गलत कामों की हौसला अफजाई कर रहा है। आज सच बोलने वाला परेशान है और झूठ बोलने वाला पाक-साफ है। एक चेहरे पर कई चेहरे लगे हुए हैं, क्योंकि दाग़ अच्छे हैं ? कलंक लगा हुआ हर कोई नाम कमा रहा है, शोहरत पा रहा है। जो ईमानदारी की राह पर चल रहा है, जो सही-गलत का मूल्यांकन करता है और सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ता है, वह परेशान व दुःखी है। क्या यही नया जमाना है ?
मुश्किलों की राह पर सभी चल रहे हैं, पर मंज़िल पर आज बेईमानी करने वाला मंज़िल पर पहुंच रहा है। रिश्वत के लेप से भ्रष्ट तंत्र का यह चलता हुआ पहिया रुपए की बलहारी के साथ धन का गुणगान कर रहा है और धन से धन बढ़ता जा रहा है, पर एक बात यह भी है कि गरीब और गरीब हो रहे हैं। माया-लोभ में घिरे हुए सभी लोग बदनामी की दहलीज को पार कर अपने-आपको क्या साबित कर रहे हैं ? यह ज़माने में बदनामी की दरियादिली है, क्योंकि अब ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ से किसी को फर्क नहीं पड़ता है। अब मलाई खाने वाले हों, या गधे गुलाब जामुन खाने वाले हैं, उनको सब हजम है। वह तो इतने रचे-बसे हैं कि उनको सब-कुछ पचाने में कोई दिक्कत नहीं होती है। तभी तो भष्टाचार व लालच इतना बढ़ गया है। आदमी दुनिया से अलविदा कह जाता है, फिर भी कफ़न के सौदागर लोग उस बेजान शरीर में भी कमाईं का जरिया ढूंढ रहे होते हैं। यह सच्चाई है, बहुत बार देखने को मिल ही जाती है। किसी निजी अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु होने के बाद भी शव को मशीन पर रख दिया जाता है, ताकि अस्पताल का मीटर चालू रहे। अगर परिजन इस कुचक्र को भांप लेते हैं, तो तुरंत बोल देते हैं-पैसे जमा कर दो और परिजन का शव ले जाओ। यही सौदागरों का वर्तमान स्वरूप है, जहां इंसानियत मिट्टी में दफन हो चुकी है।
मानवीय मूल्यों की बात अब ना जाने कहाँ खो गई है। चोर-चोर मौसेरे भाई बने हुए हैं, क्योंकि उनकी दाढ़ी में तिनका लगा हुआ है, जिसमें सिर्फ मायाचारी का दबदबा बना हुआ है। इसलिए लाचार गरीब व कमजोरों की दाल नहीं गल पा रही है, तभी तो झूठे का बोलबाला है। इस कलयुग में आदमी गंजे आदमी को भी कंघा बेच रहा है। इस ज़माने में कोट वालों की अपनी पहचान है। एक सफेद, दूसरा काला; बाकी बचेगा तो खाकी का रौब ही बहुत है। झुंड बना हुआ है। कह सकते हैं कि हमारे अपने लोग ही गिद्ध बनकर नजरें गड़ाए हुए हैं। कोई इन लालची लोगों से कोई बच कर नहीं जा पाएगा।
वर्तमान में जमाना मतलबी बन गया है, और कोई सगा नहीं, जिसे कभी ठगा नहीं हो। सबके सब दोनों हाथों से फावड़ा लेकर बटोरने में लगे हुए हैं। सच्चाई, दया करुणा, मानवता तो अब बातें हैं, इन्हें बातें ही रहने दो, क्योंकि इससे पापी पेट नहीं भरता है। इसलिए, वर्तमान समय में जहां भी देखता हूँ तो अंधेर नगरी ओर चौपट राजा की माया से झूठे लोगों का बोलबाला हो गया है।