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अब तो आ जाओ रघुवर…

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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घना तमस जगत में भरा,
कौन करे राघव की खोज
विकल भया सर्व जगत में,
नयन बहाए दीपक रोज।

कैसे किरणें बन निखरेगी,
मेरे मर्म की सुर्ख कलिका
आस लगाए द्वार खड़ी हैं,
मेरे अन्तर्मन की मलिका।

मार्ग निहार अब थक गई,
अश्क भरी प्यारी अखियाँ
कितने सावन बीत गए हैं,
कैसे धीर बंधावे सखियाँ।

मन की तृष्णा मरी नहीं है,
उम्मीदों की आस जगी है
मंत्रमुग्ध हो बेसुध तन-मन,
सदियों से अरदास लगी है।

अब तो आ जाओ रघुवर,
विरह की अग्नि भड़की है।
कैसे मन को मैं समझाऊं,
हृदय में सब्र की कड़की है॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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