संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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हर चीज़ जल रही है,
आग की लपटें उठ रही है
ये लपटें कहाँ से आ रही हैं ?
मन के अंदर से शायद…!
मन एक ज्वलनशील यंत्र है,
यह उन सभी चीजों को
जला देता है, झुलसा देता है,
जिन्हें हम देखते हैं
जिसे हम सुनते हैं,
जो हम सूंघते हैं
जो हम चखते हैं,
जिसे हम छूते हैं
और जिस तरह सोचते हैं,
शिकायत करते हैं,
भीतर ही भीतर कुछ
जलता रहता है।
इस समस्या के स्रोत क्या हैं ?
इसकी वजह क्या है ?
हमें अंदर झाँककर देखना है,
क्या यह अंहकार की वजह है ?
अंहकार तो हमें दिमाग का
ग़ुलाम बना देता है,
जबकि हमें उसका मालिक बनना है
अंहकार से हम जब ग्रसित होते हैं,
अंहकार के तब हम ग़ुलाम हो जाते हैं
अंहकार अज्ञानता बढ़ाता है,
हमें अज्ञानी बना देता है
वही हमारे भीतर आग लगा देता है।
हमें चारों ओर देखना होगा,
यह आग, यह तपिश क्यों है ?
हमें भीतर की आग को बुझाना होगा,
अंहकार को नष्ट करना होगा
तो बाहर किसी भी चीज़ में
आग लगेगी नहीं।
और अंहकार भी नष्ट हो जाएगा,
अंहकार भी नष्ट हो जाएगा..॥