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आजादी का अमृत और हमारा संकल्प

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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७५ बरस की आजादी का अमृत और हम सपर्धा विशेष….

बचपन से ही हमारे देश भारत की आजादी की महिमा सुनती आ रही हूँ। हमारी यह आजादी सैंकड़ों वर्षों की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए भारत की जनता,वीर-वीरांगना,सत्याग्रहियों द्वारा अनेक कठिनाइयों,यातनाओं,लडा़ईयाँ,संघर्षों की और लाखों बलिदानियों की कहानी है। उनकी देशव्यापी स्वतंत्रता का एक ही लक्ष्य आंदोलन एकता तप त्यागों की नींव पर ही हमारे भारत वर्ष के भाल पर भारत की जनता का स्वतंत्र ताज बन सज पाया।
आखिर विश्व पटल पर हमारे भारत वर्ष के लिए १५ अगस्त १९४७ का सुनहरा ऐतिहासिक दिवस आया,जब लाल किले पर स्वतंत्र भारत का तिरंगा अभिमान से लहराया गया। ७५ साल से लहरा रहा है,और आज हम सब गर्व से स्वतंत्रता का यह अनुपम अमृतोत्सव अति गर्व से मना रहे हैं। यह हम सबका सौभाग्य है।

स्वतंत्रता के बाद-

सैंकड़ों वर्ष की गुलामी के बाद सामाजिक, आर्थिक,राजनीतिक सुधार करना,सुव्यवस्था करना,देश को सशक्त बनाने के लिए,जनता के लिए तीनों वक्त की रोटी,जरूरी सुविधाएं,शिक्षा उत्थान लिए सही प्रणाली लाना अचानक नहीं हो सकता था। इसमें धैर्य समर्पण संग लगातर कर्म की आवश्यकता थी। शनै:-शनै: छोटे-बडे़ प्रयासों के साथ हमारे भारत देश के संग हम भारतवासियों के कदम बढ़ते आ रहे हैं। आजादी के समय हमारा देश बहुत ही गरीब था,और अभी भी है। इसका कारण देश की बिना नियंत्रित तेजी से बढ़ती एवं आबादी सहित हर क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ही है,तो जनसंख्या नियंत्रण और भ्रष्टाचार का हटना अति आवश्यक है।

समाज का रूप-

गत पचहत्तर वर्षों में हम कहाँ से कहाँ आए, तो महसूस करेंगें कि हमने,देश ने प्रगति की रफ्तार पकडी़ है,पर हम आगे बढ़ते हुए भी अभी विश्व में उत्तम स्थान पाने में संघर्षों से जूझ रहे हैं। देश की अत्यंत तेजी से बढ़ती भीषण आबादी के प्रति अभी भी जागरूकता की कमी है। जहाँ हमारे देश में युवाओं की संख्या ज्यादा है,वहीं अनेक बडो़ं और बच्चों में नकारात्मक व्यवहार विचार भी पल रहे हैं। हम अभी भी ऊँच-नीच,जाति भेद,भाषा भेद आदि की संकीर्णता से उपर उठ नही हो पाए हैं। हम कुरीतियों से जकड़े ही हैं। ऐसी विकृतियाँ सही प्रगति उन्नति के मार्ग को धीमा करती हैं,जटिल बनाती हैं। हम हमारी उत्कृष्ट संस्कृति के सही ज्ञान मार्ग को भूलते जा रहे हैं। बडो़ंं और छोटों के प्रति सही आदर भाव में भी बढ़ती कमियाँ देखने को मिल रही हैं। असीमित छल प्रपंच भी हो रहे हैं। हम नियमों का उलंघन करने में लगे रहते हैं।

प्रगति पथ पर-

हम इधर प्रगति पथ की ओर बढ़ रहे हैं। इन बीते वर्षों और इस समय यातायात में सुधार के तहत पूरे देश में सड़कों के विस्तार से देश के विकास की गति बढी़ है। रेल यात्रा में सुधार के साथ बुलेट ट्रेन का आगमन एक अच्छी पहल है। राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय विमान सेवाओं का विस्तार हुआ हैं। भारत की गरिमामय सुंदर भूमि पर पर्यटन भी बढ़ा है। शिक्षा संस्थानों का विस्तार एवं नीतियों में सुधार,विभिन्न तरह की तकनीकी शिक्षा का आगमन और शिक्षा स्तर भी बढ़ रहा है।भारत के युवा विदेशों में वैज्ञानिक,कम्प्यूटर, चिकित्सकीय पेशे में अपनी कुशलता और गरिमा की धाक बनाए हुए हैं। बिजली-पानी की भी सुविधाएं देने का कार्य हुआ और हो रहा है। युवा पीढ़ी खेल कूद में आगे बढ़ रही हैं। भारत की सुरक्षा के लिए जल,थल,वायु की सेना का सामर्थ्य और सुविधाएं बढ़ी हैं, और लगातार सुधार है। महिलाएं अब हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं,देश का गौरव बन रही हैं,पर अभी और आगे चलना है। सरकार में भी भ्रष्टाचार की कमी नजर आ रही है। ऐसी कई सकारात्मक सुंदर स्थितियाँ दिख रही हैं। गत २ वर्षों में विश्वव्यापी कोविड के भीषण प्रकोप में हमने विदेशों को भी टीका देकर मदद की और आगे के लिए भी तैयारी कर रहे हैं। इस तरह की मदद करने से विभिन्न देशों से अच्छे संबंध बने हैं। भारत की नई विदेश नीतियों से भी हमारे देश का विश्व पटल पर उत्तम नाम हुआ है।

हमारे कर्तव्य-

विभिन्न सुंदर कार्यों और प्रगतिशीलता के बावजूद अपनी कमियों को दूर किए बिना हम सही प्रगति और सुख संपन्नता तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। इसके कारण का विश्लेषण करना और कमियों को दूर करना हमारा कर्तव्य है। हम सबको स्वच्छ भारत के अभियान में अपनी भूमिका समझनी चाहिए, और पूरा सहयोग करना चाहिए। हम सब नदी,जल, प्रकृति की रक्षा के कर्म में सहायक हों।
उचित शिक्षा और संस्कार ही उत्तम समाज की नींव होती है। हम पश्चिमी देशों के लोगों की सुंदर संदेश ‘समय का महत्व और सही सुंदर अनुशासनशीलता’ की आदत को ना समझते हैं,ना अपनाते हैं। हम अपने देश की और जनता की संपति का अनादर क्यों करते हैं ? उससे क्या पाते हैं ? इनका और स्त्रियों के अनादर आदि को रोकना,इसका समाधान प्रत्येक जन का कर्तव्य है। हमारी गरिमापूर्ण प्रगति के लिए हम कुरीतियों का त्याग और जीवन के सही मूल्यों को समझते हुए सदाचार का पालन करें। सही और गलत का अर्थ समझें,व उचित कर्म में सहयोग करें। अपने भारत के लिए अपनी आजादी के गरिमा के अमृत में हम संकल्प लें कि हम सब भारत के सही उत्थान,प्रगति और रक्षा की अपनी जिम्मेदारी को समझेंगें और भारत की आनेवाली पीढ़ी के लिए नई सुंदर सुरभित सुखी-संपन्न स्वतंत्र भारत की धरती और आकाश देंगें। हम भावी पीढ़ी को स्वतंत्रता के मूल्य से अवगत कराएंगें। हम बँट कर आगे नहीं जा सकते,इसलिए हम सही मार्ग पर एकजुटता की मिसाल बनें। उन्हें सही संस्कृति के साथ उत्थान के पथ को बताएं। अपने देश के भविष्य के लिए,अपनों के लिए अपनी अनमोल स्वतंत्रता का अमृत मनाएं। हम गर्व से कहें ‘हम स्वतंत्र भारत के भारतवासी हैं।’ हमारा तिंरगा विश्व पटल पर स्वतंत्रता की गरिमा से लहराता रहे, मिसाल बने। जय हिंद,जय भारत…।

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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