डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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आतंक, विनाश और जिंदगी (पहलगाम हमला विशेष)…
‘आतंक…’, ‘आतंक…’, ‘आतंकी…’ यह शब्द हम कई वर्षों से सुनते चले आ रहे हैं। वर्षों से कहीं-न- कहीं आतंकवादी घटनाएं होती आ रही हैं। हम उन्हें सुनते हैं, उसकी खूब बातें करते हैं, फिर भूल भी जाते हैं। यह हम मनुष्यों की प्रकृति है। हम सब यह भी जानते हैं कि आतंकवादी खत्म नहीं हुए हैं। विश्व का हाल हम देख रहे हैं और यह भी देख रहे हैं, कि आतंकवादी गतिविधियाँ दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। अब वे आधुनिक हथियारों और तकनीकियों से ज्यादा मजबूत हैं। ये चूहे जैसे बिल में छुपते हैं और फिर तरह-तरह से आतंकवादी वार करते हैं। इनको शरण देना, सिखा कर तैयार करना, इनका पालन करना, इनको बढ़ावा देना, यह हमारे पास का देश कर रहा है, जो सारा विश्व जानता है। यह सोचना अति आवश्यक है, कि इसको कैसे रोका जाए। विश्व भी हमारे साथ है।
पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा पारिवारिक छुट्टियों में गए निहत्थे २६ सैलानियों के नाम और धर्म पूछकर उनकी पत्नियों-बच्चों के सामने निर्मम हत्या करना दिल दहला देने वाली भयंकर घटना है। इसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है। हर भारतीय इस कांड से अति दुःखी, पीड़ित और क्रोधित है। विश्व भी चकित एवं आहत हैं। इस तरह हत्या का मानसिक असर पत्नी, बच्चों और परिवार पर बड़ा विकट हुआ है, एवं बाद में भी इसका असर दिख सकता है। यह घटना एक संकेत एवं चेतावनी है कि ऐसी विभिन्न तरह की आतंकवादी गतिविधियों को रोकना और दमन करना अति आवश्यक है। ये आतंकवादी गतिविधियाँ ना रूकीं, तो आगे और भी भयंकर कांड हो सकते हैं। इससे कश्मीर में रहकर जीविका चलाने वालों पर भी संकट मंडरा रहा है। जन-जीवन डर के साए में नहीं रह सकता। हम सभी भारतवासियों के लिए यह बड़ी चेतावनी है। यह मनुष्य जाति पर भविष्य में एक बहुत बड़ा संकट का संकेत है। हमारा भारत शांति प्रिय और कर्तव्यपरायण देश है, और दूसरों के मामले में दखलंदाजी नहीं करता है। हम राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध की धरती के वासी हैं। हम अपनी समस्याएं स्वयं सुलझाने का सामर्थ्य रखते हैं, पर अन्याय, दुर्व्यवहार एवं निर्ममता भी नहीं सहते हैं। हम जन-जीवन का आदर करते हैं, पर उन नवविवाहिता, उन महिलाओं उन मासूम बच्चों के दर्द को कैसे सहें ?अपनी सुरक्षा, देश की सुरक्षा और अन्याय का प्रतिकार करना हमारा कर्तव्य-धर्म है तथा यह अवश्य होना चाहिए।
महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को शस्त्र उठाकर युद्ध के लिए प्रेरित किया था, क्योंकि अन्याय को सहना कायरता कहलाता है। यह समय आतंकवादियों संग आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले देश, क़स्बों और लोगों के दमन व निवारण का है। आगे के लिए आतंकवादी गतिविधियों को रोकना आवश्यक है। अब आतंक वादियों से लड़ने के लिए हम सबको उठना होगा। यह सब मन, कर्म, वचन से इस प्रतिकार की क्रिया में युद्ध में साथ रहें, यह हमारे चेतना और बल की हूंकार है।
हम भारतीयों की बाँहें फड़क रहीं हैं। अब और नहीं, अब और नहीं, असुर दुश्मनों तुमको सबक सिखाना है। तुम्हारा दमन अवश्य होगा। यह समय अनेकता में एकता का समय है। हम भारतीय जात-पात, विभिन्न धर्मों से उपर उठें, क्योंकि मानवता सबसे बड़ा धर्म है। राक्षसी प्रवृत्तियों वाले आतंकवादी, जिनका कोई ईमान धर्म नहीं होता, अब उनको शह देने वालों का दमन-निवारण अवश्य करना है।
भारत सरकार ऐसी गतिविधियों के दमन के लिए अपनी तैयारियाँ जोर-शोर से कर रही है, जिससे हमारा विश्वास और जोश बढ़ रहा है। भारतीय स्त्री, पुरुष, बच्चे जन जन सभी अब युद्ध निवारण चाहते हैं। मानवीय-भारतीय ज़िंदगी कहती हैं-तुम हमें सुकून से जीने दो। हम परिवार, घर, समाज और देश में निडर, सुख, शांति व समृद्धि सहित प्रगतिशील जीवन जीएं। जीवन ज़िंदगी का नाम है। जनमानस की ज़िंदगी सुरक्षित जीवन के साथ सदा जिंदा हो और रहें। जय हिन्द, जय भारत, वंदे मातरम्।
परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है