ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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भीगा तन मन आँगना, भीगा बाट दुआर।
आया माह असाढ़ का, पहली पड़ी फुहार॥
धरती थी सूखी हुयी, दर्रों की भरमार।
भेजा द्रवित नीर-निधि, हो कर घन उपहार॥
हड़बड़ हड़बड़ भागता, आया भीषण मेघ।
तानसेन बन कर चलो, छेड़े राग-मल्हार॥
कड़कड़-कड़कड़ का करे, कड़क कड़क कर शोर।
घुमड़-घुमड़ कर घन बढे़, कारे भीम अपार॥
चमक रही तड़-तड़ तडित, टप-टप टपके बूँद।
झाँय-झाँय झकझोरता, सनसन चले बयार॥
बढ़ जाती है धुक-धुकी, सुन कर मेघ दहाड़।
गर्जन घन भारी करे, बरखा कम आसार॥
झरझर-झरझर की रिदिम छिंटो का स्वर यंत्र।
हाहाकारी थी तपिश, मौसम हुआ उदार॥
नील गगन काला हुआ, घर्षण मेघ निनाद।
देख पयोधर युद्ध को, मन विभोर इस बार॥
बरखा स्वर रदरद अभी, घम-घम करता मेघ।
सावन बरसेगा कभी, रिमझिम कर उद्गार॥
उछल रहा हिय दादुरा, गाता लय बिन गीत।
नाच रहा मन मोर बन, देख रहा जल धार॥
हरियाये पादप सभी, झूम रहे छतनार।
प्यासा चातक तृप्ति पा, खुश है पंख पसार॥
छिप-छिप भानू देखता, निकल-निकल आकाश।
अँगडाई भू ले रही, यौवन पूर्व निखार॥
वल्लरियाँ तरु डालियाँ, कुसुम का ढोए भार,
वृंद-वृंद मधुकर करे, गुनगुन का गूँजार॥
खिल कर क्यारी मोगरा, बाँटे जगत सुगंध।
धरनि घास से छिप गयी, पशु करते आभार॥
आनंद भर कृषक चले, अन्न धरे खलिहान।
खेत खार को रोप कर, खुशियाँ रहे निहार॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।