प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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एक दिन इमारत इठलाई,
कहने लगी-मुझसे बड़ा न कोई भाई।
शहर हो या गाँव हो,
धरती माँ की संतान हो,
पसंद सभी को आती हूँ
सभी के दिल को भाती हूँ,
सपनों में मैं आती हूँ।
इन्हीं सपनों को पूरा करने,
मनुष्य चला अपनी डगर पर।
पाँच से पच्चीस हो, पच्चीस से हो तीस,
गगनचुंबी इमारतों से सभी की होती प्रीत॥