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कुछ कच्चे मकान रहने दो…

बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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बंगले बहुत हो चुके शहर में,
कुछ कच्चे मकान रहने दो
बाबू जी बैठ के बतिया सकें,
नुक्कड़ की वो चाय की दुकान रहने दो।
इत्मीनान से बैठकर,
हाल ए दिल सुना सकें
घर के बाहर थोड़ी,
पहचान रहने दो।
दिल भर गया,
इस आधुनिकता से
घर में कुछ पुराना भी
सामान रहने दो।
हर जगह बस इमारतें बना रखी हैं,
थोड़ी खाली जमीन पर
खेत-खलिहान रहने दो।
दिलों में थोड़ी तो जगह हो,
सबसे प्रेम भरी राम-राम रहने दो॥

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