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मजदूर

गंगाप्रसाद पांडे ‘भावुक’
भंगवा(उत्तरप्रदेश)
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सर पे गठरी,
कांधे पे बोझा
बिन रोज़े का रोज़ा,
साथ में बाल बच्चे
उम्र में कच्चे,
खाने के लाले
जुबान पे ताले,
सड़क पे जल रहे
मजदूर मतवाले,
जाना है घर
परदेस नहीं बसर,
बंद काम-काज
पैसा न अनाज,
कोई न सुनने वाला
चेहरा हुआ काला,
होंठों पे जाला
हाथों में छाला,
पैरों में रिसती बिवाई
चिल्लाए माई,माई,
फूटी किस्मत हरजाई
घर के रहे न घाट के,
कोल्हू के बैल काठ के
बच्ची चिल्लाई,
पैरों में कील घुसी भाई
नयी मुसीबत आयी,
बड़ी मुश्किल से निकाला
सड़क की मिट्टी,घाव पे डाला,
बहा रुधिर काफी
देर में थमा,
पैर के इर्द गिर्द जमा
दूध मुँहा था प्यासा,
रोते-रोते सूखे हलक
बंद थी पलक,
कड़ी थी धूप
सबको लगी भूख,
सुनाई पड़ा साइरन
शरीर में सिहरन,
बदल दिया रास्ता
न सहनी पड़े पुलिसिया
यातना,
हे परमात्मा
अब नहीं सहना,
ये जीवन ले लो ना
अब हमें नहीं जीना।

परिचय-गंगाप्रसाद पांडेय का उपनाम-भावुक है। इनकी जन्म तारीख २९ अक्टूबर १९५९ एवं जन्म स्थान- समनाभार(जिला सुल्तानपुर-उ.प्र.)है। वर्तमान और स्थाई पता जिला प्रतापगढ़(उ.प्र.)है। शहर भंगवा(प्रतापगढ़) वासी श्री पांडेय की शिक्षा-बी.एस-सी.,बी.एड.और एम.ए. (इतिहास)है। आपका कार्यक्षेत्र-दवा व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त प्राकृतिक आपदा-विपदा में बढ़-चढ़कर जन सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-हाइकु और अतुकांत विधा की कविताएं हैं। प्रकाशन में-‘कस्तूरी की तलाश'(विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह) आ चुकी है। अन्य प्रकाशन में ‘हाइकु-मंजूषा’ राष्ट्रीय संकलन में २० हाइकु चयनित एवं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय ज्वलंत समस्याओं को उजागर करना एवं उनके निराकरण की तलाश सहित रूढ़ियों का विरोध करना है। 

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