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पुनः सनातन लाना होगा

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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आओ मिलकर बीजते हैं बीज, इस धरती पर सनातन का,
भटकी हुई नव पीढ़ी को फिर से, पढ़ाते हैं पाठ पुरातन का।

जहां थी मान-मर्यादाएं घनी, अभाव में भी संतोषी आत्म था,
इस मानव समाज के बच्चे-बच्चे में, कूट-कूट के अध्यात्म था।

सम दृष्टि थी हर मानव की, दिखता हर घट में परमात्म था,
तन-बदन में शालीन वस्त्र थे, सामाजिक नियम पुरातन था।

न जाति थी-न धर्म थे कोई, न ही नर-नारी में कोई लड़ाई थी,
पूरी धरती शान्ति से ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के भाव में समाई थी ।

दुरात्म भाव ने आ के धारा पर, मानव से मानव लड़ाया था,
सुख-शान्ति, चैन और भाईचारा, हम सबसे दूर भगाया था।

दुरात्म भाव को दूर भगाओ, पाठ यह सबको पढ़ाना होगा।
अंध आधुनिकता को करके पीछे, पुनः सनातन लाना होगा॥