ऋचा वर्मा
पटना (बिहार)
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समीक्षा…..
साहित्य और कला के क्षेत्र में ‘सिद्धेश्वर’ एक जाना-माना नाम है। उन्हीं के सम्पादन में प्रकाशित ‘कथा दशक’ १० नए-पुराने कथाकारों की चुनिंदा कहानियों से सजा एक रंग-बिरंगा गुलदस्ता है, जिसमें अलग तेवर, समाज के अलग वर्गों और काल की २० कहानियाँ संकलित हैं। इसी विविधता के कारण यह संकलन हर वर्ग के पाठकों को आकर्षित करने का माद्दा रखता है।
अशोक प्रजापति से लेकर पूनम कतरिया और प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’ जैसे लेखक इसमें शामिल हैं।सबसे पहले स्थान मिला है अशोक प्रजापति की कहानियों को, जो पाठकों का पूरा ध्यान मांगती हैं। उनकी बिहार के पटना शहर की पृष्ठभूमि पर लिखी हुई कहानी ‘दुश्वारियों भरे दिन’ एक सीधे-सादे ग्रामीण हेमू की कहानी है कि, कैसे वह परिस्थितिवश एक रिक्शावाला में परिवर्तित हो पैसे के लिए जद्दोजहद करते हुए अस्पताल माफिया, नोटबंदी की मार झेलते हुए लाख कोशिशों के बाद भी अपने नवजात शिशु को नहीं बचा पाता है। इस कहानी को पढ़ते-पढ़ते दुष्यंत कुमार का वह शेर याद आ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं, “सोचा था उनके देश में महंगी है जिंदगी, पर जिंदगी का भाव वहां और भी खराब!”
डाॅ. योगेंद्र नाथ शुक्ल की कहानियां आकार में छोटी होने के बावजूद दिल में गहरा असर छोड़ती हैं। ‘झुलसता समय’ में ताऊ जी, जिन्हें रवि अपनी बहन के शादी के लिए बिचवान या अगुआ बनाकर लड़के वाले के यहां ले जाता है, वहां वह अपनी बेटी की शादी उस लड़के से तय कर आते हैं। यह कहानी सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों के बदलते समीकरण और उसके परिणामों की बखिया उधेड़ती है।
‘प्रकृति का हाहाकार’ अजय द्वारा लिखित कहानी एक मानवेतर कथा है, जिसमें बूढ़े बरगद के माध्यम से जंगलों के कटने की व्यथा-कथा कही गई है।
विजयानंद विजय की कहानियां अपने आकार के कारण लघुकथा कही जा सकती है, जो कोरोनाकाल के मद्देनजर लिखी गई है, जिसने एक तरफ लोगों का रोजगार छीना और कमली जैसे मजदूरों को भूख से तड़पने के लिए विवश किया तो दूसरी तरफ इस गम और बेरोजगारी के समय में लोगों को एक-दूसरे से तो जोड़ा ही, उन्हें अपने गाँव का महत्व भी बता दिया। जयंत की ‘कॉपर ब्राउन’ कहानी बहुत ही सूक्ष्मता से बेघर बच्चियों के वैश्यावृत्ति में संलग्न होने की मजबूरियों की ओर ध्यान आकर्षित करती है। संगीता तोमर की कहानी ‘दूर एक नाव की ओर’ में एक बेटे ने अपने पिता को अपने स्टार्ट-अप में नौकरी देने का प्रस्ताव देकर संदेश देने की कोशिश की है कि, बुजुर्ग बोझ नहीं, बल्कि अपने अनुभवों के कारण आपके लिए बहुत ही उपयोगी हो सकते हैं।
अगर हम मानें कि, ‘कथा दशक’ रंग-बिरंगे मोतियों की एक माला है तो उसमें पूनम कतरियार की कहानी ‘अंतर्वेदना’ लॉकेट के समान है। महाभारत की पौराणिक कथा की पृष्ठभूमि में लिखी यह कहानी देवव्रत का अंबा के प्रति प्रेम, जिसे वह कभी उजागर नहीं कर पाया, को आधार बनाकर लिखी गई है। यह कहानी अपनी भाषा, कथ्य और शैली में प्रवाह के कारण अत्यंत ही रोचक बन पड़ी है। ऐसी कहानियां लिखी जानी चाहिए ताकि, आज की पीढ़ी समझे कि हमारे पुराने ग्रंथ भी उतने ही रोमांटिक हैं जितने अंग्रेजी उपन्यास या अन्य साहित्य।
प्रियंका श्रीवास्तव की ‘लाल से हरी बत्ती’ एक प्रेरणादायक कहानी है, जो बच्चों को सिखाती है कि कोई भी नियम चाहे वे यातायात के ही क्यों ना हों, हमारी भलाई के लिए बनाए जाते हैं।
सम्पादक सिद्धेश्वर की कहानी ‘हम होंगे कामयाब’ बहुत ही समसामयिक और मार्मिक कहानी है। ऐसी कहानी कहने के लिए हिम्मत चाहिए। लेखक एकसाथ बेरोजगारों को सेना में नौकरी पाने के लिए अपने-आपको देशभक्त बताना और सेना के प्रति राजनीतिज्ञों की सहानुभूति दिखाना, दोनों ही वर्गों के मुखौटों को निकालकर सच्चाई को पाठकों के सम्मुख लाने की सफल कोशिश करते हैं।
कुल मिलाकर यह संकलन सभी के लिए पठनीय है और कथा जगत में स्वागत योग्य है।