डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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कागज को पेड़ के आकार में काट कर, मार्कर से उसने पेड़ की आकृति बनाई। कैंची से उसे काटा। उसमें छोटे-छोटे छेद किए। रंग-बिरंगे कागज काटकर सेलो टेप से उन्हें चिपकाया। छेदों में धागों की मदद से मोतियों की माला पहनाई।… रात ३ बजे तक वह क्रिसमस ट्री बनाती रही।
सुबह उठकर अपने क्रिसमस ट्री को देखा तो उसका मन प्रसन्न हो गया। आसपास के घरों में क्रिसमस ट्री लग गए थे। उसकी नजर जब उन पर गई तो उसकी प्रसन्नता कपूर-सी उड़ गई। बरामदे के कोने में क्रिसमस ट्री लगाकर बुझे मन से वह घर के अंदर आ गई।
“बेटा! कितने परिश्रम से तुमने क्रिसमस ट्री बनाया… फिर उसे कोने में क्यों लगाया ?”
“डैडी! मुझे लग रहा कि, कॉलोनी के लोगों ने इतने सुंदर-सुंदर और कीमती क्रिसमस ट्री अपने घर में लगाए… हमारा छोटा-सा क्रिसमस ट्री उनके आगे अच्छा नहीं लग रहा!”
“बेटा…! तुम ऐसा क्यों सोच रही हो ? अधिकांश लोग क्रिसमस ट्री खरीद कर लाए हैं, तुमने तो कितना परिश्रम किया! …और प्रभु यीशु परिश्रम से खुश होते हैं… मन की पवित्र भावना से खुश होते हैं।”
प्रसन्न होकर उसने अपना क्रिसमस ट्री उठाया और बरामदे के बीचों-बीच रख दिया।