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स्वर्ग-नर्क का द्वार यहीं

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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स्वर्ग सभी को ही चाहिए,करके लाख नारकीय करम
दौलत से कोई ना खरीद पाया,जिसने पाला यह भरम,
जिसने पाला यह भरम,चाहता है जाना स्वर्ग बार- बार
मंदबुद्धि को समझाइए,स्वर्ग-नर्क का यहीं से है द्वार,
स्वर्ग-नर्क अलग नहीं है,बसी हुई कोई दूसरी दुनिया
पापों का फल नर्क है,स्वर्ग चाहिए तो कमाओ पुण्य।

स्वर्ग-नर्क तो बस है कल्पना,जीवन अंत बाद विचार
इस जीवन में बार-बार खुलें,स्वर्ग-नर्क के यहीं द्वार,
यह तो कर्मों के फल हैं,आते रहेंगे जीवन में बार- बार
खुशियाँ ही स्वर्ग-सी लगती,दु:ख लगता नर्क हर बार,
चाह तू कर ले बहुत स्वर्ग की,जाना तेरे नहीं वश में
सदमार्ग पर चलता रह,मत पड तू इस कश्मकश में।

चार लोगों के कांधे चढ़ कर,कहाँ चला रे तू इन्सान
स्वर्ग-नर्क यहीं भुगत चुका,अब काहे आत्मा परेशान,
अब काहे आत्मा परेशान,मिलेगा तुझे एक नया जन्म
स्वर्ग बनाने की ही कोशिश करना,करके सदकर्म,
तकलीफ से जीना है,किसी भी तरह के नर्क में जीना।
अमृत स्वर्ग में मिलता है,नर्क में जहर को ही है पीना॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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