कुल पृष्ठ दर्शन : 215

You are currently viewing जब बसंत लहराया…

जब बसंत लहराया…

रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
*****************************************

रक्तिम रंग ले सूर्य से,
सरसों से ले पीत रंग
आई ऋतुओं की रानी,
देखो सुन्दरी बंसत।

सूर्य की लाली का चादर,
ओढ़ जब बंसत लहराया
बासंती बयार से मानो,
वसुधा का परचम लहराया।

वीरों का बलिदान भी,
नए कलेवर में सजकर
गाँवों के खेतों में खिले,
सरसों के फूल बनकर।

दो ऋतुओं का मिलन भी,
रंग अनोखा दिखलाया
शीत के कम्पन संग,
ग्रीष्म का जाल फैलाया।

कामदेव से ले प्रीत रंग,
पीली सरसों इठलाई
बासंती रंग से रंगकर,
वसुधा ने ली अँगड़ाई।

थोड़ी ठंडक थोड़ी गर्मी ले,
मस्तानी जब हवा चली
कामदेव के बाण से,
यौवन में हुई खलबली।

वसुधा के घर पर पाहुन,
बंसत की आई बहार
खुशियाँ मना लो दिल भर,
मेहमान न रूकते लगातार।

आने-जाने की यह प्रकिया,
रोके रोक सका है कौन ?
वसुधा से लेकर कई रंग,
पुनः फागुन आ रहा मौन॥

Leave a Reply