कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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मुफ्तखोरी और राष्ट्र का विकास…
हो रहा है शोषण कितना हर इंसान जूझ रहा,
ठगी और मुफ्तखोरी से सबका लालच बढ़ रहा।
रही नहीं हमदर्दी किसी से, सबका शोषण हो रहा,
आज का मानव देखो कितना खुदगर्ज हो रहा।
आम आदमी हो, चाहे कोई नेता हो,
अब रिश्वतखोरी से नहीं डर रहा।
अपने हित की चाह में देखो, हेरा-फेरी कर रहा।
नहीं रहा है उसको कोई डर, जैसा शासन वैसा जन।
शासक बाँट रहा मुफ्त की रेवड़ियाँ,
सत्ता अपनी बचाने को।
सत्ता को बचाने के खातिर,
वह अर्थव्यवस्था को डुबो रहा,
मुफ्त की रेवड़ियाँ बांटकर,
वह राज्य को खो रहा।
मुफ्तखोरी की लालसा में, प्रजा भी यह भूल रही
निरंकुश शासक के हाथों में, अपनी बागडोर दे रही।
जरुरत है आज ऐसी जनता की,
जो वास्तविकता को देख सके
मुफ्तखोरी को लात मार, देशहित में सोच सके।
जागो, जन जागो अब तो जागो,
अभी नहीं तो कभी नहीं।
वरना जकड़े जाओगे फिर,
गुलामी की जंजीरों में॥
परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”