कुल पृष्ठ दर्शन : 299

You are currently viewing जीवनधारा बनी तुम

जीवनधारा बनी तुम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

***********************************************

अभिलाषा मन फुर्सत के पल,
रहूँ साथ हमदम साथी बन
रूप निहारूँ नज़र उतारूँ,
प्रेम सरित कर लूँ अवगाहन।

कैसे बीते अठ्ठाइस बरस,
जीवन स्वर्णिम तन-मन अर्पण
हर खुशियाँ गम बाॅंटे सुख-दु:ख,
रच नवल कीर्ति अनमोल रतन।

जीवन धारा बनी सखी तुम,
बन पतवार जल नौकायतन
नित सरल सहज व्यवहार कुशल,
सह संवेदित मुख खिला चमन।

तुम ढाल बनी हर विपद समर,
हर विजय साथ गा गीत सनम
उपहास हास परिहास मुखर,
अरुणाभ प्रगति साथी हमदम।

जिंदगी सजी बागबां सुमन,
महकी गुलशन नीलाभ अमन
धर्म प्रिया गुलज़ार चितवन,
माधव वसन्त हिय प्रीत रमण।

सुन्दर विशाल मृगनैन युगल
मुखहास बिम्ब फल चारु ललित
गंभीर मौन संयम अविचल,
मितभाषी विवेक कीर्ति फलित।

रिमझिम फुहार तुम मधुश्रावण,
दाम्पत्य घटा भीगे भावन
निशिकांत कला रोशन निकुंज,
रजनीगंधा महके तन-मन।

पिकगान मधुर मधुकान्त मधुप,
कुमुदिनी प्रसून निशि विलसित
मन मुकुल रसाल मदन मोहित,
हे प्राण प्रिये! नवनीत मुदित।

सुखसार सजन रुखसार हृदय,
रविकान्त अरुण सम भाल प्रियम
कमलनैन लोल लालित प्रियमन,
आनंद कुंज आलिंग सनम।

सौभाग्य प्रिये ! हमदम साजन,
स्वर्गिक आनंद जीवन पावन
पुलकित रोम-रोम प्रीति मिलन,
हे प्रिये ! करूँ तुझ प्रीत नमन।

स्नेहाशीष प्रिये परिणय दिवस,
श्रंगार सजन रस हो जीवन।
तुम चारुचंद्र मनमीत हृदय,
दीर्घायु सुखी हो नित तन-मन॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

 

Leave a Reply