मुम्बई (महाराष्ट्र)।
कवि तो कविता लिखता है लेकिन उसको समाज में स्वीकृत और सम्मान सही मायने में आलोचकों के सतत प्रयासों के बाद ही मिल पाता है। कालिदास को सम्मान कोलाचल मल्लिनाथ ने दिलाई, जायसी को रामचंद्र शुक्ल ने, घनानंद को विश्वनाथ तो तुलसी बाबा को घर-घर पहुँचाने का कार्य गीता प्रेस ने किया। यदि मैं कहूँ कि डॉ. शीतला प्रसाद दुबे मेरे मल्लिनाथ हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं है।
यह उदगार डॉ. सुधाकर मिश्र ने के.सी. महाविद्यालय में आयोजित ‘रामोदय’ केंद्रित तथा प्रो. (डॉ.) शीतला प्रसाद दुबे द्वारा संपादित समीक्षा ग्रंथ ‘रामोदय के काव्य सौष्ठव’ के लोकार्पण समारोह में व्यक्त किए। इसी क्रम में डॉ. मिश्र ने कहा कि, रामोदय के पंचम सर्ग को मैंने १९७० में लिखा था। समारोह में एचएसएनसी विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो. (डॉ.) हेमलता बागला, पूर्व मंत्री अमरजीत मिश्र, प्राचार्य डॉ. तेजश्री शानबाग, डॉ. सतीश पांडेय, डॉ. शीतला प्रसाद दुबे तथा डॉ. ऋषिकेश मिश्र ने भी अपने विचार रखे। शुरुआत रोशनी ‘किरण’ द्वारा सरस्वती वंदना से हुई।
इस अवसर पर डॉ. बागला ने कहा कि
रामोदय सही मायने में रामत्व का उदय है। दुबे जी ने इस बात को अपने व्यवहार से हमेशा साबित किया है। दुबे जी ने पुस्तक के संपादन में जो श्रम किया है, वो अनुकरणीय है। मैं इस मंच से कहना चाहूंगी पहले आप सभी यह समीक्षा ग्रंथ पढ़ें और फिर रामोदय पढ़ें।
अमरजीत मिश्र ने कहा कि, यह पुस्तक उनके लिए भी है जो इसके आधार प्रभु श्रीराम से दूरी बनाकर चलते हैं। डॉ. दुबे ने कहा कि, मेरा विशेष प्रयास यही रहता है कि कैसे भी करके अपनों को जोड़ा जाए। रामोदय का संदेश है असत्य पर सत्य की विजय और सामाजिक सद्भाव का, योग्य को सम्मान का। यह संदेश हर किसी तक पहुँचे।
समारोह में प्राध्यापक गण, साहित्यकार, हिंदी सेवी एवं विद्यार्थियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। सम्यक संचालन आनंद सिंह ने किया।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)