पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का प्रारंभ चैत्र नवरात्र से ही किया था। चैत्र प्रतिपदा से ही वैदिक धर्म का नव विक्रम् संवत् २०७९ प्रारंभ हो रहा है। चैत्र माह प्रकृति में बदलाव का सूचक है। हम लोगों को नकारात्मक विचारों को त्याग कर नई शुरूआत करनी चाहिए। इसमें प्रेम, करुणा और परोपकार जैसे गुण हमारे सहायक हो सकते हैं। जिस व्यक्ति ने अपने मन, वाणी और चित्त की वृत्तियों को संयमित कर लिया, उसने नवरात्रि–साधना के मूल संदेश को आत्मसात कर लिया, क्योंकि यह अनुभूत सत्य है कि संयमित जीवन आपको सुख, आनंद, स्वास्थ्य और शांति प्रदान करता है।
नवरात्रि के पीछे का एक वैज्ञानिक आधार है कि पृथ्वी द्वारा सूर्य के परिक्रमा काल में एक साल की ४ संधियाँ होती हैं, जिनमें से मार्च और सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल की २ मुख्य नवरात्रि पड़ती है। इस समय रोगाणुओं के आक्रमण की सर्वाधिक संभावना रहती है। ऋतु संधियों या सरल शब्दों में ऋतु परिवर्तन में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, इसलिए स्वस्थ रहने, शरीर को शुद्ध रखने और मन को निर्मल रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम नवरात्रि है।
नवरात्रि महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पड़वा’ के नाम से मनाई जाती है। इसका नामकरण ‘गुड़ी’, जो ब्रम्हा का ध्वज है और ‘पड़वा’ जो चंद्रमा के चरण के पहले दिन को दर्शाता है। यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन का संकेत देता है। इसमें फर्श पर रंगोली, फूलों, आम व नीम के पत्तों से सजी एक विशेष गुड़ी ध्वज और उसके ऊपर चाँदी या ताँबे के बर्तन रख कर घर में ऊँचे पर लगाया जाता है। सड़क पर जुलूस, नृत्य और श्रीखंड-पूड़ी जैसे उत्सव के खाद्य पदार्थ के साथ मनाया जाता है।
‘उगादी’ हिंदू नववर्ष का त्यौहार है, जिसे ‘युगादि’ भी कहा जाता है। यह त्यौहार बहुत धूमधाम से दक्षिण भारत के आँध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में मनाया जाता है। ‘उगादी’ के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, उपहार और दान देते हैं। दरवाजों को आम के पत्तों से सजाते हैं व मुख्य द्वार पर कलश रखते हैं। दोस्तों-रिश्तेदारों से मिलते हैं और उगादी की शुभकामना देते हैं। ‘उगादी’ हमें अतीत को छोड़कर सकारात्मकता के साथ जीवन की नई शुरुआत का संदेश देता है।
सिंधी नववर्ष भी चैत्र प्रतिपदा को ही मनाते हैं। झूलेलाल जयंती को ‘चेटीचंड’ कहा जाता है। इस दिन भगवान् झूलेलाल की जल के रूप में पूजा की जाती है। नए कपड़े पहनते हैं और झूलेलाल जुलूस में शामिल होते हैं। उत्सव के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम और लंगर साहब का आयोजन किया जाता है।
चैत्र नवरात्रि को वसंत नवरात्रि
के रूप में भी जाना जाता है। इस दौरान देवी दुर्गा के ९ स्वरूपों की पूजा आराधना की जाती है। ये त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। ९ दिन तक लोग विधि-विधान से उपासना और उपवास भी करते हैं। धारणा है कि पूजा से माँ दुर्गा प्रसन्न होती है और उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं।
पहला दिन शैल पुत्री का है। इसे प्रतिपदा भी कहा जाता है। शैल पुत्री के माथे पर अर्धचंद्र है और दाहिने हाथ में त्रिशूल व बाएं हाथ में कमल का पुष्प रहता है। दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी का है। ये स्वरूप ज्ञान और दृढ संकल्प का प्रतिनिधित्व करता है। तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा का है। ये बाघ पर सवारी करती हैं। इनके नाम का अर्थ है, जिसके माथे पर चंद्रमा विभूषित है। ये शांति का प्रतिनिधित्व करती है। फिर चौथा दिन देवी कूष्मांडा की पूजा का है।ऐसी मान्यता है कि देवी ने ब्रह्मांड के निर्माण में अपना योगदान किया था। देवी दुर्गा का ये रूप सिंह पर सवार है और इनके ८ हाथों में एक माला के साथ ७ घातक हथियार विभूषित रहते हैं…
पांचवा दिन स्कंदमाता की पूजा का है। इस स्वरूप को भक्तों की आत्मा को शुद्ध करने वाला माना जाता है। इनकी गोद में इनका पुत्र स्कंद होता है। चार भुजाओं वाली देवी हाथों में कमल धारण करती हैं और अन्य हाथों में कमण्डल और और एक घंटी है। छठा दिन देवी कात्यायिनी की पूजा का है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों की कथा के अनुसार महिषासुर राक्षस का वध करने के लिए माँ पार्वती ने कात्यायिनी का रूप धारण किया था। सातवां दिन कालरात्रि की पूजा का है। कालरात्रि का स्वरूप सबसे उग्र और हिंसक माना जाता है। आठवां दिन महागौरी की पूजा का है, जो पवित्रता और शांति का प्रतीक हैं। देवी दुर्गा के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए महाअष्टमी के दिन उपवास रखते हैं। अंतिम नौंवा दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा का है। इस दिन छोटी कन्याओं का पूजन करके उन्हें भोजन करवाकर कुछ दक्षिणा या उपहार देने का रिवाज घर-घर देखा जाता है।
इस दिन को भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। रामनवमी के दिन ही चैत्र की नवरात्रि का समापन होता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से उपासक की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस तरह से भक्तगण चैत्र नवरात्रि के ९ दिन तक धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत होकर विभिन्न प्रकार के धार्मिक आयोजनों द्वारा तन-मन की शुद्धि का प्रयास करते हैं।