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थी हमारी ख़ुशियों का खज़ाना…

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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मेरे पिता जी की साईकल स्पर्धा विशेष…..

कुछ ख़ुशियाँ हमारी अभिव्यक्ति से परे होती हैं,
जीते हैं शान से ऐसी,सपनों की ज़मी होती है…।

बचपन में पिताजी की साइकिल का,करते थे इंतज़ार…
साइकिल चलाना जब सीखते तो कैंची थी शानदार…।

उस ख़ुशी को लिख पाना तो है ही नहीं आसान,
बच्चों के लिए वो पल तो,था जैसे स्वर्ग समान…।

जिसे जीया है हम बच्चों ने,साल…और दर साल,
पिताजी की साइकिल तो,थी ही बड़ी कमाल…।

बाज़ार जाना हो या फ़िर हमें,कभी सैर को जाना,
साईकिल होती थी हमारी,ख़ुशियों का खज़ाना…।

मीलों दूर का सफ़र हमारा,तब होता था शानदार,
टंगा ट्रांजिस्टर हैंडिल में,और गीतों की हो बहार…

बड़े मज़े से भैया मेरा,बैठा करता था आगे,
कैरियर में मैं पीछे बैठूं,तो साइकिल सरपट भागे…।

माँ का राशन भी तो उसमें,पिताजी थे लाते,
हर मौसम में साइकिल से वो मज़े से थे घुमाते…।

सामने लगी थी लाईट,साइकिल रात में भी चलती,
हट जाओ भाई सामने से उसकी टिंग-टिंग घंटी कहती…।

कहाँ गए वो दिन हमारे…जो वापस न आए,
पिताजी की साइकिल पर..थे सुनहरे पल बिताए..॥

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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