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देश की आभा फिर हो

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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स्वार्थ के वश सब अपनी सोचें,
देश की है किसको चिंता।
एक स्वार्थ से सब स्वार्थ सधेंगे,
सोचो तुम जो हो जिन्दा।

बाग ही गर जो उजड़ गया तो,
फूल कहाँ रह पाएगा।
गुलशन भले ही आज सजा हो,
पतझड़ में मुरझाएगा।

एक-एक से मिलकर हम अब,
सवा अरब के पार हुए।
एक पेट और हाथ है दो,फिर भी,
पूर्ण आबाद न आज हुए।

माना यह कि दो सौ बरसों की,
हमने गुलामी भी सही।
पर सत्तर बरसों की आजादी ,
कम भी तो होती नहीं।

कहीं चूक तो हमसे हुई ना,
सोचो फिर चिंतन करके।
आजादी की हाला पीकर,
होश हमारे हुए फुर्र से।

आजादी मिलने भर से न,
लक्ष्य हमें मिल पाएगा।
दौड़ में जो हम सुसुप्त हुए तो,
कछुआ जीत ही जाएगा।

देखो फिर से ’उगते सूर्य ‘(जापान) को,
देशों में जो मिसाल बना।
कोप न जाने कितने सहकर,
आबाद सम्भल कर आज बना।

राष्ट्रभक्ति का वो ही जज्बा,गर,
देश-जन न ला पाएगा।
लघु पड़ोसी होते हुए भी,
कोई भी आँख दिखाएगा।

अब भी समय है लोकतन्त्र की,
ज्वाला और प्रज्वलित करो।
एक-एक कर सब मिलकर ही,
देश को फिर संगठित करो।

राष्ट्र यज्ञ में एक आहुति,
हर-जन की जब भी होगी।
देश की आभा फिर हो सोने-सी,
उन्मुक्त गगन का हो पंछी॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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