सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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मिली बहुत दिन बाद सहेली
गले लगाया पर वह मौन,
मैंने पूछा उससे-बहना
कहो सताता तुमको कौन ?
बहती आँखों के अश्रुधार ने
दुःख उसका बता दिया,
ठीक नहीं है कुछ तो ऐसा
मैंने भी अनुमान किया।
बड़े प्यार से पास बिठा कर
पकड़ा मैंने उसका हाथ,
बोली वह-घर बिखर गया है
नहीं पति है मेरे साथ।
बच्चों का पालन-पोषण
और सास मेरी हैं बहुत बीमार,
सबका रखना ध्यान करूँ क्या ?
दिनभर करती यही विचार।
धन की भी तो पड़े ज़रूरत
काम मुझे करना ही होगा,
निकल न पाऊँ घर से बाहर
घर में ही रहना होगा।
बड़ा अलग-सा उसका जीवन
संघर्ष उसे करना होगा,
साथ दिया उसका मैंने फिर
हर दिन नहीं एक-सा होगा।
प्रश्न मेरे मन में यह उठता
क्यों कर ऐसा होता है ?
सहती सदा नारी ही पीड़ा
हालात से लड़ना होता है।
जो नारी दिग्भ्रमित मनुज को
हर पल हर क्षण राह दिखाती,
वही पुरुष द्वारा शोषित है
युक्ति भी कोई काम न आती।
नारी है मधु-ऋतु की रानी,
फिर भी व्याकुल है संसार में।
दीप-शिखा सी जलती नारी,
फिर भी है क्यों अंधकार में…?