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नीम का पतझड़…स्वर्णिम पत्तों की बारातें…

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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पिछले इतवार को गाँव जाना हुआ। जाते वक्त रास्ते में ही बसंत की दस्तक महसूस होने लगी थी। बोगनवेलिया पर नया खुमार चढ चुका है, जहां-तहां पलाश केसरिया रंगों से पूरे जंगल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। शाल्मलियों के पेड़ों ने गजब ढा दिया है। लता वल्लरियों पर बसंत छाता जा रहा है। एक अलग ही सुरभि गाँवों के मैदानों और कानन में चल चुकी है, जो सबको रोमांचित किए जा रही है।
इन सबके बावजूद अबकी बार मेरा विशेष ध्यान अगर किसी खास तरू ने खींचा, तो वो नीम के वृक्ष हैं। जंगलों में इन दिनों नीम का पतझड़ जारी है, और ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे किसी ने अनगिनत स्वर्ण के पत्ते हवाओं में उछाल दिए हो। सब दूर स्वर्णिम पत्तों की बारातें जमी पर उतर रही है। बड़ा ही लुभावन, चित्तरंजक और मनोरम दृश्य साकार हो उठा है। खेतों की मेढ़ के सहारे मैं जब चलने को हुआ, तो मानो इन नीम ने मुझे रोक ही लिया। ठिठक-ठिठक कर हौले-हौले मैं चलता रहा, तब मैने देखा कि नीम का पतझड़ भी प्रकृति की कितनी अनुपम प्रक्रिया है। पूरे सालभर बारिश, आँधी, तूफान, चक्रवात, कड़ी धूप और कड़ी सर्दी भी बड़े आनंद से झेलकर सबको सुकून देनेवाले ये मजबूत पत्ते बसंत आते ही किस प्रकार सहजता और आनंदपूर्वक अपनी देह त्यागकर पृथ्वी पर लौट आते हैं! इनका लौटना भी कितना मनमोहक, वाह! वो देखो एक हल्का-सा हवा का सरसराता झोंका नीम के बदन में घुसकर जाने कितना सोना लूट लाया है। और वो देखो, यह हवा की कुछ तेज-सी लहर आई एवं नीम के तन-बदन से स्वर्ण ही स्वर्ण उन्डेल लायी है। ओहो हो! कितनी- कितनी स्वर्णिम बारातें तरूओं से पृथ्वी पर उतरती जा रही है। हवा के झोंके पर झोंके चले आ रहे हैं और नीम के बदन से स्वर्णिम पत्तियों की परियाँ जमीं पर उतार रहे हैं। इन स्वर्णिम लहराती बारातों को मैं भौचक्का हो देखता ही रह गया। मैने देखा कि तरूओं की तलहटी पर पत्तों की कितनी ही परतें बिछ गई हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे-सारी पत्तियाँ पृथ्वी को वंदन करने और उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए बारातों का रूप लेकर पृथ्वी पर लौट रही हैं। अबकी बार नीम की काया में घुसती हुई हवा की एक तेज लहर आई और अनगिनत स्वर्णिम पत्तियाँ ठेठ मेरे बदन पर स्वर्ण की वर्षा कर गई। मेरे तन-बदन पर स्वर्ण ही स्वर्ण….। मैं कितनी देर तक अभिभूत होकर उन स्वर्णिम पत्तियों से घिरा रहा… ओह ! कितना रोमांचक क्षण था वह। एक ही बसंत का जीवन, पर इन पत्तियों का फिर भी कितना सयानापण…। मैंने नजरें उठाकर नीम को देखा, कितना संतोष और आल्हाद था नीम के चेहरे पर। नीम की कृतकृत्य नजरें मेरे जहन में उतर आई। नीम की सारी की सारी टहनियाँ अपना स्वर्णिम लिबास उतारकर पृथ्वी मैया को लौटा रही थी। नीम से उतरती पत्तियाँ मुझे मृत्यु का संगीत समझा रही थी। पलभर मैंने सोचा, जिंदगी को सोना करना शायद इसी पतझड़ से ही आदमी ने सीखा होगा। अपने मात्र १ साल के जीवन में ठंडक, छाया, प्राणवायु प्रदान करने वाली ये पत्तियाँ और वृक्ष इसलिए इतने प्रसन्न, समाधानी और आनंददायी नजर आ रहे हैं। जीवनभर दूसरों के काम आने के कारण ही इन पत्तियों का रंग सोने जैसा हो गया है। झर जाने का जरा भी मलाल नही, किंतु पृथ्वी से मिलने का घनघोर आनंद जरूर है। पत्तों का यह समर्पण कितना सार्थक है। मैंने महसूस किया कि करोड़ों ₹ देकर भी क्या कोई ऐसी स्वर्ण वर्षा मुझ पर कर सकता है…? कतई नहीं। पतझड़ी नीम ने मुझे कमाल से रोमांचित कर आनंद से भर दिया था।
आनंद सागर की डोह से तनिक बाहर आकर मैंने नजर उठाकर सामने क्षितिज पर देखा तो सूर्यदेव स्वयं नीम के सोने से सनकर पश्चिम की देहरी छू रहे थे। पश्चिम के क्षितिज पर कितनी ही तरह के स्वर्णिम रंगों की पखरण हो रही थी। अम्बर से अवनी तक सारे आकाश में बस स्वर्ण ही स्वर्ण घुल चुका था। संध्या अपनी छम-छम पैंजनिया की आवाज करती हुई नभ से नीम के बदनों पर उतर आई थी। नीम की स्वर्णिम स्मृतियाँ समेटे एवं तन-बदन पर स्वर्ण लपेटे उस स्वर्णिम माहौल से स्वर्णमय होकर मेरे पदचाप जब आशियाने की ओर उठे, तब बिल्ली के कदमों से हौले-हौले रजनी अवनी पर उतरने लगी थी।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।