सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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पेड़ और पानी से भरपूर था,
घरौंदा डालियों पर झूलता था
सभी पक्षी मस्ती मचाते थे,
पेड़ पर पींगे लगाते थे।
जाने किस दुश्मन का साया,
प्यारे जंगल पर छाया था
एक-एक कर धीरे से उसने,
सब, पेड़ों को कटवाया था।
हरियाली सारी खत्म हो गई,
पेड़ों की संख्या न्यून हो गई।
दाने जाने कहाँ खो गए ?
पानी के गागर सूख गए।
तपती धरा से डर जाते हैं,
पक्षी गर्मी नहीं सह पाते हैं
कुछ साथी तो बिछड़ गए हैं,
गर्मी से शायद मर गए हैं।
फिक्र बहुत ही पड़ी हुई है,
ये हमारी जमीं नहीं हैं ??
चहकती बगिया मिट गई है,
गौरैया भी सिमट गई है।
हे ईश्वर, कुछ ऐसा कर दो,
धरती को झुरमुट से भर दो।
नाजुक और कोमल पंछियों को,
खूब चहकने और गाने दो॥