अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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विश्व पिता दिवस (१५ जून) विशेष…
आँखों में नमी-सी, पर चेहरे पे तेज़ है,
वो मुस्कुराते कम हैं, पर सारा संदेश है
हाथों में छाले, मगर दिल में प्यार है,
पिता ही तो जीवन का असली आधार है।
चलते चुपचाप, कभी कोई गिला नहीं है,
जो सह लिया उन्होंने, वो कभी कहा नहीं है
छाँव की तरह हैं तपती दोपहरी में,
हर डर की पहरेदारी में, हर संघर्ष में ढाल है।
वो नींव हैं, जिस पर खड़ा हर सपना है,
पिता बिना जीवन, अधूरा इक अपना है
कभी डांट में चिंता, कभी चुप में दुआ है,
उनकी हर एक बात में बसता है खुदा है।
रात को थके हों, फिर भी सुबह पहले जागते हैं,
हमारे कल के लिए, वो रोज आज भागते हैं
कभी जेब खाली, मगर मन होता भरा,
बच्चों की हँसी में ही देखते अपना सवेरा हैं।
‘पिता’ कोई शब्द नहीं, वो एक अहसास है,
जो वक्त से भी आगे चलें, फिर भी पास हैं
वो दीवार नहीं जो रोके, वो पुल जो जोड़ता है,
हर तकलीफ में छाया बन, हमें खुद से जोड़ते हैं।
कहने को बहुत कुछ है, पर लफ्ज़ छोटे हैं,
पिता के त्याग के आगे तो हीरे-मोती भी खोटे हैं
एक नज़र, एक आशीष, एक मुस्कान की कमी,
पिता की जगह दुनिया में कोई ले न सके कभी।
जीवन की हर धड़कन में बसते हैं “पापा’,
ऊपर से कठोर, पर अंदर से सरल होते हैं ‘पापा।’
दें प्रेम-सम्मान, ज़िंदगी सिखाते हैं ‘पापा’,
इन-सा भी दूजा न, माँ सम वट वृक्ष ‘पापा॥’