सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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बेतहाशा भागते-दौड़ते,
गाड़ियों की सवारी करते
खड़े-बैठे गपशप करते…
मैंने केवल देह को देखा।
लाइन में लगते, टांग खींचते,
धक्का-मुक्की जबरन करते
हर गली और चौराहे में,
मैंने केवल देह को देखा।
स्वाद बढ़ाते, अनर्गल मिलाते,
कभी थूकते, छुपते-छुपाते
बची-खुची आत्मा मिटाते,
मैंने केवल देह को देखा।
करते इशारे साँझ-सवेरे,
अस्त-व्यस्त कपड़ों में बंधते
अय्याशी में गोते लगाते,
मैंने केवल देह को देखा।
नन्हीं-नन्हीं आत्मा को,
जानकर प्रपंच सिखाते
धीरे से फिर देह बनाते,
मैंने ढेरों देह को देखा।
पुतले-सी सब देह घूमती,
आत्माएँ अब बची नहीं।
पहले मरती थी केवल देह,
अब आत्माएँ मरने लगी॥