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मजबूरी-बाल मजदूरी

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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बचपन होता सबका प्यारा
नहीं भूलता जीवन सारा,
पर कुछ बच्चों की मजबूरी-
स्कूल छोड़ करते मजदूरी।

किसी के पालनहार नहीं हैं
किसी के घर बीमार कोई है,
कोई ग़रीबी से है जूझता-
किसी का घर दारू से भरता।

होटल, बाग, बगीचे देखो
जूता पॉलिश, रेल में देखो,
कोई बेचता गुड़िया-मोटर-
प्रातः कोई फेंकता पेपर।

सरकार योजना कई चलाती
पर वह सब तक पहुँच न पाती,
नहीं पता क्या कैसे करना ?
कहाँ-कहाँ पर उनको जाना।

बनता है दायित्व हमारा,
इन बच्चों का बनें सहारा।
जीवन उनका बन जाएगा-
फिर वो आपके गुण गाएगा॥