डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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मुझे भाये ना बसंती फाग रे।
मनबसिया ना आज मेरे पास रे॥
पुरवईया पवन लगाये अगन,
सब अपनी-अपनी धुन में मगन
मैं जाऊं कहां, चहुँ ओर रंग बरसे,
मेरी कोरी चुनर, भीगे नैन तरसे।
कैसे मन को दिलाऊं मैं आश रे,
मनबसिया ना आज मेरे पास रे…॥
भीगी-भीगी हवेली, भीगा पूरा शहर,
पर मेरे दर्द की, ना है थोड़ी खबर
संगिया सहेलियों को सूझी ठिठोली,
कोई रंगे चुनरी, कोई रंगे चोली।
सारी नगरी में, उड़े है गुलाल रे,
मनबसिया ना आज मेरे पास रे…॥
मेरे मन का आँगन सूना-सूना रहा,
कहीं बरसात रंगों की, कहीं सूखा रहा
गलियों में मची धूम, होली रे होली,
हर राधा अपने श्याम के पीछे हो ली।
मैं कैसे छुपाऊँ, अपने जज्बात रे,
मनबसिया ना आज मेरे पास रे…॥