हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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“अब फिर मेला शुरू होने वाला है।”
“अरे बिट्टू यह मेला नहीं, महाकुम्भ है, जहां धर्म, आस्था व सनातन संस्कृति के दिग्दर्शन होंगे, इसे मेला मत बोलो।”
“अच्छा यानी १२ वर्ष में एक बार लगने वाला महाकुम्भ स्नान है, जहां साधु-संत अमृत स्नान करते हैं। जहां अंतरंगी हिमाचल के घोर तपस्वी जो गुफाओं में रहते हैं; जनमानस के बीच सिर्फ इन्हीं कुम्भ स्नान में आते हैं और दिव्य साधुगण देखने को मिलेंगे।”
“हाँ, हाँ सही कहा रहा है तू बिट्टू।”
“अरे पापा जी, में तो हमेशा अच्छा ही बोलता हूँ, आप ही नहीं मानते। हमेशा यही करते हो हमारा बेटा नासमझ है। अरे मैं तो पढ़ा-लिखा समझदार आपका लाड़ला बेटा बिट्टू हूँ। मैं भी एक बार कुम्भ महोत्सव का यह अद्भुत दृश्य देख चुका हूँ। महान साधु अपने चेलों- चपाटों के साथ घोड़े-बग्घी बैंड-बाजों से पेशवाई सवारी अपने-अपने अखाड़ों के बैनर के बीच चल समारोह से शान व शौकत का दर्शन हम सभी भक्तों को कराते हैं। वह हिन्दू धर्म की महिमा के प्रति लोगों को बताते हैं।”
“अरे हाँ बेटा, वह संन्यासी लंगोटधारी व हजारों नागा साधु- संत-तपस्वी भी इसी महाकुम्भ मेले में रहते हैं।”
“पर पापा, उनमें इतना उल्लास कैसे आता है।”
“बेटा उनमें तो अटूट श्रद्धा विश्वास हमेशा से रहता है और शक्ति में भी वह अंतर्यामी होते हैं। वह प्रभु के भक्त यानी दास रहते हैं, इसलिए इसे ईश्वरीय प्रताप ही कह सकते हैं।”
“पापा, पिछली बार जब हम गए थे तो महाकुम्भ में पंडालों-टेंट की वह मिनी नगरी तो देखते ही रह गए थे। आखिर इतनी व्यवस्था, इतना खर्च कौन करता है ?”
“अरे, यह पर्व हमारे धर्म के लिए बहुत पवित्र व आत्ममंथन करने हेतु है। इसलिए महाकुम्भ स्नान में हम सभी को एक डुबकी लगा कर पुण्यशाली बन जाना चाहिए। इसलिए केन्द्र व प्रदेश सरकार दोनों मिलकर यह व्यवस्था देखती है। धन व सामग्री की चिंता किसे है, देने वाला श्री भगवान है और खर्च करने वाला श्री भगवान है। इतना मत सोचो, हम भी चलेंगे इस बार भी।”
“हाँ-हाँ, पापा जी जरूर, पर पापा मैं हमेशा से एक चीज सोचता हूँ कि इस अत्याधुनिक युग में भी आस्था का दीप कैसे प्रज्वलित है ?”
“बिट्टू, कोई भी युग आए या जाए, भगवान के प्रति हमारे मन में कोई भी शिकायत या विरोध नहीं होता, क्योंकि आस्था की इस ज्योति को उसे परम शक्ति द्वारा ही अखण्ड रुप से प्रज्वलित रखा हुआ है। तभी तो ‘बाल ना बांका कर सकेगा जो जग बेरी हो।’, क्योंकि मारने वाला है भी भगवान और बचाने वाला भी है भगवान।”
“एक बात बताएं पापा, इस अमृत कुम्भ में सबसे खास व महत्वपूर्ण बात क्या होती है ?
“बिट्टू यह १२ वर्ष में लगने वाला कुम्भ हमारे पर्व व त्योहारों पर जो स्नान होता है, जिसमें सबसे पहले साधु-संत स्नान करते हैं, उसके बाद आम व खास लोग नदी में डुबकी लगाते हैं, जिससे अमृत की रसधारा की प्राप्ति के लिए पूर्ण रूप से अन्तर्मन की शुद्धि हेतु इस महाकुम्भ में स्नान करते हुए मोक्ष के लिए एक कदम आगे बढ़ाते हैं।”